वर्ष 2018 में फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग को पांच देशों की सरकारों ने व्यक्तिगत तौर पर एक अंतरराष्ट्रीय समिति के सामने पेश होकर फर्जी खबरें और गलत सूचनाओं के प्रसार के बारे में अपनी बात रखने को कहा। ये पांच देश थे- अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, आयरलैंड और ब्रिटेन। वहीं यूरोप के कई देशों में, अमेरिका में और सिंगापुर में फेसबुक के अधिकारियों की वहां के कानून बनाने वालों ने तीखी आलोचनाएं की हैं। इन्हें यह निर्देश दिया गया कि ये ज्यादा जिम्मेदारी के साथ काम करें। इन्हें यह भी
एनडीटीवी इंडिया भारत का एक प्रमुख हिंदी समाचार चैनल है। इस चैनल पर जाने-माने पत्रकार रवीश कुमार का कार्यक्रम ‘प्राइम टाइम’ काफी लोकप्रिय है। इस चैनल के एक सूत्र में अपनी पहचान नहीं जाहिर करने की शर्त पर एक बड़ी अजीब सी बात बताई। इन्होंने बताया कि हम लोगों को एक बात बड़ी अजीब सी लगने लगी कि हमारे बेहद लोकप्रिय कार्यक्रम ‘प्राइम टाइम’ को लेकर फेसबुक पर होने वाली हलचल तब बहुत धीमी हो जाती थी जब कार्यक्रम के किसी संस्करण में सरकार की आलोचना करने वाली खबरें चलाई जाती थीं। कार्यक्रम में एक दिन पेट्रोल
भारत में कई पत्रकार और मीडिया संस्थान फेसबुक पर यह आरोप लगाते हैं कि उनकी खबरों को जानबूझकर इस प्लेटफॉर्म पर रोका जाता है। कई पत्रकारों का यह भी कहना है कि कुछ मौकों पर उन्हें अपने फेसबुक अकाउंट में लॉग इन ही नहीं करने दिया जाता। जिन पत्रकारों के साथ फेसबुक ने ऐसा किया, उन सबमें एक बात समान है। ये सभी लोग सत्ताधारी पार्टी और मोदी सरकार के विरोध में लिख रहे थे। इनमें ‘जनता का रिपोर्टर’ के रिफत जावेद, ‘जनज्वार’ की प्रेमा नेगी और अजय प्रकाश, ‘कारवां डेली’ के कई पत्रकार और ‘बोलता हिंदुस्तान’ के
ये आरोप अक्सर लगते हैं कि नरेंद्र मोदी के समर्थक ऑनलाइन माध्यमों के जरिये गलत सूचनाएं फैलाते हैं। उन पर यह भी आरोप है कि कई बार वे यह काम कंटेंट मार्केटिंग कंपनियों के साथ मिलकर करते हैं। दूसरी तरफ कुछ मीडिया संस्थानों और पत्रकारों की यह शिकायत है कि अगर वे सत्ताधारी पार्टी या केंद्र की मौजूदा सरकार की आलोचना करने वाली खबरें करते हैं तो उन्हें फेसबुक जानबूझकर दरकिनार करता है। इनका कहना है कि कई बार तो फेसबुक सेंसर यानी काट-छांट का काम भी करता है। इसे कुछ उदाहरणों के जरिए समझा जा सकता है। दिल्ली
22 सितंबर, 2018 को भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजस्थान के कोटा में अपनी पार्टी के सोशल मीडिया वॉलिंटियर्स से संवाद कर रहे थे। उन्होंने इस दौरान कहा, ‘हम जनता तक हर संदेश पहुंचा पाने में सक्षम हैं। चाहे वह अच्छा हो या बुरा। चाहे वह सच्चा हो या फर्जी।’ अमित शाह के इस बयान के मायनों को समझना के लिए यह याद करना होगा कि सबसे पहले उन्होंने ऐसी बातें 2017 के फरवरी-मार्च में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के पहले कही थीं। उन्होंने कहा था कि भाजपा के समर्थकों ने बहुत बड़े व्हाट्सऐप समूह
भारत का बजट सोमवार को आ रहा है. लगभग हर टीवी चैनल, हर अख़बार बजट की ख़बरों से रंगे हुए हैं. पर आम आदमी के लिए यह कवरेज और बजट बेतुका है. पर क्यों? इसके पाँच बड़े कारण निम्न हैं. वित्तीय घाटा: सारे वित्तमंत्री और विशेषज्ञ बजट में वित्तीय घाटे के बारे में ख़ूब बोलते हैं. भारत की सभी सरकारें साल 2008 तक क़ानूनन देश के वित्तीय घाटे को कम कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीन फ़ीसदी के बराबर लाने के लिए बाध्य थीं. ऐसा फ़िस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट 2003 के तहत किया जाना था. लेकिन
मूर्ख दिवस (एक अप्रैल) से शुरू होने वाले साल के 12 महीनों के लिए केंद्र सरकार का बजट जल्द पेश होने वाला है. यह वित्त मंत्री अरुण जेटली का तीसरा बजट है. इसके बाद 2019 के आम चुनाव के पहले अंतरिम बजट से पहले वह दो बजट और पेश करेंगे. लेकिन अर्थव्यवस्था शायद वह आखिरी चीज़ होगी, जो आबादी के बड़े पैमाने के दिमाग़ में है. जाटों के आंदोलन ने अचानक उत्तर भारत के एक से ज़्यादा औद्योगिक इलाक़ों में उथल-पुथल मचा दी. वाहन निर्माण करने वाली असेंबली लाइन बंद हो गईं. आम जनजीवन सिर्फ़ हरियाणा नहीं बल्कि राष्ट्रीय
मंगलवार को सीबीआई द्वारा दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के कार्यालय पर मारे गए छापे के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी उनके दफ्तर में प्रवेश नहीं करने दिया गया। इसके पीछे की कहानी चाहे जो रही हो, प्रथमदृष्टया तो यह कार्रवाई भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से नुकसानदेह साबित होने वाली लग रही है। सीबीआई द्वारा दिल्ली सरकार के प्रमुख सचिव राजेंद्र कुमार के घर और कार्यालय पर छापा मारने के निर्णय के पीछे क्या वजहें थीं, ये पृथक से बहस का विषय है। लेकिन अगर इस कार्रवाई के राजनीतिक
बिहार चुनावों में हार के बाद भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास इसके सिवा कोई और विकल्प भी नहीं था कि वे अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति अधिक सौजन्य और सदाशयता का प्रदर्शन करें। उन्होंने ऐसा ही किया भी, जो कि संसद में प्रधानमंत्री के भाषण और फिर उसके बाद जीएसटी बिल पर चर्चा के लिए सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को चाय पर बुलाने के उनके निर्णय से झलका। लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि उनकी पार्टी और उससे जुड़े संगठनों के चंद व्यक्तियों पर कैसे अंकुश लगाया जाए, जिन्हें कि दिल्ली और
यह तो तय है कि बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम शेयर बाज़ार में निवेशकों के लिए निराशा लेकर आया है. नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के समर्थन वाला कॉरपोरट का एक बड़ा हिस्सा इस बात से दुखी होगा कि नीतीश कुमार एक बार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बनेंगे. भारत में उद्योगपतियों का एक वर्ग बिहार चुनाव समाप्त होने के पहले ही सरकार की आलोचना करने लगा था. इसमें इंफ़ोसिस के एनआर नारायणमूर्ति, बायकॉन की किरण मजूमदार शॉ और राहुल बजाज जैसे लोग शामिल हैं. इन लोगों ने सार्वजनिक रूप से सामाजिक सौहार्द बनाए रखने