So, what’s new about whistleblower Frances Haugen’s revelations about how the top brass of the now-renamed Facebook turned a blind eye to the proliferation of incendiary, hateful and false information on its social media platform, how the digital monopoly chose profits over safety, how it actively aided Right-wing demagogues, including Prime Minister Narendra Modi, and contributed to the rapid spread of Islamophobia in India? Answer: not very much, really. Yet Haugen’s decision to leak troves of...
Chandan Saurav Mitra, or CS as some of his old friends called him, would have turned 67 on 12 December had he not left us. From academics he turned to journalism and then, politics. He had an amazingly-wide range of interests: from Bollywood film songs to international politics. He was incredibly bright and intelligent, had a sharp wit and sense of repartee. He was exceptionally alert till the last few months of his life when his memory started failing. He enjoyed all the best things of life...
पेगासस स्पाइवेयर के जरिए जासूसी के आरोपों की जांच की पहल सरकार की तरफ से नहीं होने के बाद पहले चार प्रमुख लोगों ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और इस मामले की जांच कराने की मांग की। इनमें हिंदू के वरिष्ठ पत्रकार रहे नरसिम्हन राम, वरिष्ठ पत्रकार शशि कुमार, वकील मनोहर लाल शर्मा और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास शामिल हैं। इन लोगों ने यह पहल जनहित में की। लेकिन अब पेगासस स्पाइवेयर के शिकार हुए चार पत्रकारों परंजॉय गुहा ठाकुरता यानी मैं, सैयद निसार मेहदी अबदी
প্রশ্ন: সিপিএম-এর রাজ্য সম্পাদক সূর্যকান্ত মিশ্র বলেছেন যে, তৃণমূল কংগ্রেস এবং বিজেপি দল দু’টি চরিত্রগত ভাবে এক নয়। এ বিষয়ে আপনার কী মত? প্রণব বর্ধন: এই কাগজেই নির্বাচনের আগে একটি সাক্ষাৎকারে বলেছিলাম যে, বামপন্থীরা একটা ভুল করছেন— ওঁরা দু’দলকে একই ধরনের শত্রু বলে মনে করছেন। মতাদর্শে ও কর্মপ্রণালীতে বিজেপি এখন ভারতের রাজনৈতিক ও সাংস্কৃতিক জগৎকে এক ভয়ানক বিপদের দিকে নিয়ে যাচ্ছে, সাম্প্রদায়িক বিষজর্জর স্বৈরতান্ত্রিক হিন্দুরাষ্ট্রই ওদের নিশানা, সেটা আমাদের মাথায় রাখতে হবে। তৃণমূলের অনেক দোষ আছে—...
It was on March 17 that I received an unexpected call from Chennai-based investigative journalist Sandhya Ravishankar. She said she was flying into Delhi that evening and had to meet me most urgently the following day. I told her I was travelling and the only time I could possibly keep aside for her would be early in the morning at 6am. Why the urgency, I asked. After all, we had not been in touch for a while since a meeting of the Foundation for Media Professionals. “I’ll tell you when we meet...
আমাদের ইতিহাসে ফোনে আড়ি পাতার উদাহরণ অনেক আছে। এই রকম আড়ি পাতার ঘটনায় কর্ণাটকের মুখ্যমন্ত্রী রামকৃষ্ণ হেগড়েকে পদত্যাগ করতে হয়েছিল। তারপরে নীরা রাদিয়ার কথা রেকর্ড করে রাখা হয়েছিল, সেটা নিয়েও একটা কেলেঙ্কারি হয়ে গেল। পেগাসাসের সফটওয়ার যে এরা ব্যবহার করছে তা আমরা ২০১৯-এই জানি। ভীমা কোরেগাঁও মামলায় অভিযুক্তদের কম্পিউটারে ম্যালওয়ার ঢুকিয়ে দেওয়া হয়। সুতরাং বিস্মিত হবার কোনও কারণ নেই। কিন্তু সরকার বারংবার কেন বলছে আমরা আইন মেনে চলছি? যদি আইন মানো তাহলে স্বরাষ্ট্র মন্ত্রকের সচিবের অনুমতি নিয়ে এই কাজ...
एक दशक से पहले तक 25 जून, 1975 को लगाए गए आपातकाल की यादें धूमिल होती जा रही थीं। जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल के लिए माफी मांगी तो लगा कि हमारे इतिहास का एक भयावह काल खत्म हो गया है और अब यह वापस कभी नहीं आएगा। 46 साल बाद यह एहसास हो रहा है कि हम गलत थे। आपातकाल की छाया एक बार फिर से दिख रही है। हालांकि, इसका रूप अलग है। अगर आपातकाल एक ‘झटका’ था तो आज की स्थिति ‘हलाल’ की तरह है जिसमें लोकतंत्र को हमारी राजव्यवस्था से अलग किया जा रहा है। कई तरह से देखा जाए तो यह अधिक सूक्ष्म और खतरनाक है। आपातकाल
It is 46 years since Indira Gandhi declared an ‘internal’ Emergency in the country on June 25, 1975. There are obvious dissimilarities between that 21-month period and the last seven years — but the similarities are so stark as to warrant repeated reiteration. How did we reach this particular point in our political life that we had so unequivocally rejected less than half-a-century ago? The Emergency certainly taught Indira Gandhi that she had completely misread the democratic commitment of the...
জরুরি অবস্থা (Emergency) ঘোষণার দিনটার স্মৃতি এখন ইষৎ ঝাপসা। সেই ঝাপসা স্মৃতির কাচ থেকে ধুলো সরিয়ে এটুকু বলতে পারি ইন্দিরা গান্ধী যখন জরুরি অবস্থার জন্য ক্ষমা চাইলেন আমাদের মনে হয়েছিল, ইতিহাসের এক দুঃসহ অধ্যায়ের অবসান হল। আমরা ভেবেছিলাম হয়তো এর পুনরাবৃত্তি আর কখনও হবে না। ৪৬ বছর পেরিয়ে এসে আজ বুঝতে পারি, আমরা ভুল ভেবেছিলাম। জরুরি অবস্থার ভূত আমাদের আজও প্রতি পল অনুপলে আবার তাড়া করছে, মাত্রাটা স্রেফ আলাদা। সেদিনের জরুরি অবস্থা যদি গণতন্ত্রে কুঠারাঘাত হয়, তবে আজকের সংখ্যাগরিষ্ঠের রাজনীতি...
कोरोना महामारी की दूसरी लहर की वजह से पूरे देश में जो संकट पैदा हुआ है, उसमें कुछ पारंपरिक मीडिया संस्थानों और सोशल मीडिया पर भी ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हवा बदलने लगी है। हालांकि, नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब से ही मीडिया का एक बड़ा वर्ग हमेशा उनके साथ खड़ा नजर आता था। जैसे-जैसे 2014 का लोकसभा चुनाव नजदीक आता गया, नरेंद्र मोदी के पक्ष में खबरें प्रकाशित और प्रसारित करने वाले मीडिया संस्थानों की संख्या बढ़ती गई। भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के