मुंबई में संपत्ति विवाद में रिलायंस जब एक छोटे ट्रस्ट से हार गया!

यह एक अलग बात है कि भारत की सबसे बड़ी निजी स्वामित्व वाली कॉर्पोरेट इकाई ने बहुत ज़्यादा प्रगति नहीं की क्योंकि सेठ दामोदर माधवजी चैरिटी ट्रस्ट (अब डीएमटी) ने समूह के प्रयासों का पुरज़ोर विरोध किया है। इस ट्रस्ट का नियंत्रण वसनजी परिवार के पास है।

स्पष्ट रूप से यहां दांव बहुत ऊंचे हैं। ये संपत्ति समुद्र के सामने एक प्रमुख भूखंड है जिसका आकार लगभग 16,000 वर्ग फीट है। जानकारों के अनुसार, चूंकि यह टोनी ब्रीच कैंडी में स्थित है इसलिए इसकी कीमत 85 करोड़ रुपये से कम नहीं है और शायद यह 400 करोड़ रुपये तक हो सकती है। इस पर 20 मंजिला इमारत बनाने से इसकी कीमत 20-25 गुना और बढ़ जाएगी।

अभी, इसमें वसनजी परिवार के पैतृक देवता का एक निजी मंदिर, तीन विवाह हॉल, एक सेनेटोरियम और एक धर्मशाला या विश्राम गृह है। ये उन वंचितों और कैंसर रोगियों के लिए है जो इलाज के लिए मुंबई आते हैं। ट्रस्टियों का दावा है कि ये जगह “अत्यधिक रियायती” दरों पर दिया जाता है।

आश्चर्यजनक रूप से चुनौती का सामना करते हुए ऐसे संकेत हैं कि रिलायंस समूह बॉम्बे उच्च न्यायालय के समक्ष संपत्ति की अपनी तलाश को छोड़ सकता है जहां वर्तमान में मामला चल रहा है। लेकिन ये समूह (एकदम) पीछे क्यों हट रहा है?

इसका कुछ संबंध उस गंभीर मामले से हो सकता है जो उस ज़मीन के स्वामित्व को लेकर बनी हुई है जिस पर एंटीलिया है। एंटीलिया अंबानी परिवार का 7 मंजिला आवास है जो ट्रस्ट के स्वामित्व वाली ज़मीन से बहुत दूर नहीं है। ज़मीन की बिक्री से जुड़ा क़ानूनी विवाद जिस पर गगनचुंबी इमारत खड़ी है, अब दो दशक से ज़्यादा पुराना है। ये ज़मीन मूल रूप से कर्रिमभॉय इब्राहिम खोजा अनाथालय ट्रस्ट के स्वामित्व में है। मामला सुप्रीम कोर्ट में है और इसमें शामिल एक पक्ष एंटीलिया कमर्शियल प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी है जो रिलायंस समूह का हिस्सा है। इस विषय पर एक विस्तृत रिपोर्ट 21 सितंबर 2022 को न्यूज़क्लिक में प्रकाशित हुई थी। यह तथ्य कि रिलायंस को किसी प्रतिरोध की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी।

 

रणनीति

ब्रीच कैंडी में डीएमटी ज़मीन के मामले पर वापस आते हैं। जय वसनजी उस परिवार के प्रतिनिधि हैं जो ट्रस्ट को नियंत्रित करते हैं। वह 22 साल के है और एक अंतरराष्ट्रीय कंसल्टेंसी फ़र्म में काम करते है। उनके परदादा प्राणजीवन वसनजी डीएमटी के संस्थापक ट्रस्टी थे। इसकी स्थापना एक सदी से भी पहले हुई थी।

डीएमटी विवाद से संबंधित काग़ज़ात लिए जय ने कहा कि “रिलायंस समूह 2020 के आसपास से इस प्रमुख संपत्ति पर नज़र गड़ाए हुए था।” उनका कहना है कि “जिस ज़मीन पर एंटीलिया स्थित है उसे हासिल करने के इस समूह के कड़वे अनुभव को देखते हुए, इस समूह के लिए ट्रस्ट की संपत्ति हासिल करने का सटीक तरीका हमेशा ट्रस्ट को अपने क़ब्ज़े में लेना रहा है यानी कि अपने स्वयं के चुने हुए व्यक्तियों को ट्रस्टी के रूप में जोड़ने की मंशा रही है।”

इस दिशा में, “ट्रस्टी बदलने की आड़ में मेरे पारिवारिक ट्रस्ट की संपत्तियों पर क़ब्ज़ा करने का एक पिछले दरवाज़े से प्रयास किया गया”। वे कहते हैं, “मैंने तुरंत आरआईएल के निदेशकों और कर्मचारियों द्वारा दायर ‘परिवर्तन रिपोर्ट’ का विरोध किया और माननीय सहायक चैरिटी आयुक्त ने आवश्यक आदेश दिए, जिससे उनका प्रारंभिक अधिग्रहण प्रयास विफल हो गया”।

सेठ दामोदर माधवजी चैरिटी ट्रस्ट के पास जय वसनजी रिलायंस समूह के वरिष्ठ अधिकारी जय के दावों का खंडन करते हैं, लेकिन इस बारे में इस रिपोर्ट में बाद में और जानकारी दी जाएगी। सबसे पहले, आइए पिछले कुछ वर्षों में हुई सभी गतिविधियों पर नज़र डालें।


निरंतर बदलाव

9 नवंबर 2011 को डीएमटी के ट्रस्टी रहे वसनजी परिवार के पांच सदस्यों (किशोर वसनजी, निखिल मोरारजी, बिपिन मोरारजी, रवींद्र वेद और धवल वसनजी) ने “अचानक” इस्तीफा दे दिया और ट्रस्ट के परिसर का क़ब्ज़ा रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष-वित्त कोलुम राजा रामचंद्रन (जिन्हें के. राजा के नाम से भी जाना जाता है), जियो प्लेटफॉर्म्स के निदेशक दिलीप चोकसी और रिलायंस कंटेंट डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड के निदेशक अतुल दयाल को सौंपने के लिए “नियुक्ति का प्रस्ताव” जारी किया। इस प्रस्ताव के साथ-साथ इस स्टोरी में शामिल अन्य दस्तावेजों की पड़ताल लेखक द्वारा की गई है।

इस निर्णय का औचित्य क्या था?

इस लेखक ने किशोर वसनजी से फोन पर बात की। उन्होंने कहा कि वे कुछ भी नहीं कहना चाहेंगे क्योंकि मामला महाराष्ट्र के चैरिटी कमिश्नर के कार्यालय में लंबित है। (बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, 1950 द्वारा कार्यालय को प्रदत्त शक्तियों के अनुसार चैरिटी कमिश्नर कर्तव्यों और कार्यों को करने के लिए उत्तरदायी हैं।)

जब फोन पर संपर्क किया गया तो बिपिन मोरारजी ने इस लेखक से बात नहीं किया। इसलिए, इस सवाल का जवाब हमें नहीं मालूम है।

लेकिन, प्रस्ताव के आधार पर राजा, दयाल और चोकसी ने जनवरी 2022 में ट्रस्ट की संपत्तियों को किराए पर देने के लिए रिलायंस प्रोजेक्ट्स एंड प्रॉपर्टी मैनेजमेंट लिमिटेड, आरआईएल की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी के साथ एक “लीव एंड लाइसेंस” समझौता किया। इससे रिलायंस द्वारा परिसंपत्तियों पर क़ब्ज़ा करने के प्रयासों को गति मिली।

लगभग उसी समय, रिलायंस समूह के तीन अन्य वरिष्ठ अधिकारी हितेश मनहरलाल वोरा, प्रियेन जयंतीलाल शाह और संजीव एम. दांडेकर को बैंक ऑफ बड़ौदा की भूलाभाई देसाई रोड शाखा में डीएमटी के बैंक खाते में हस्ताक्षरकर्ता के रूप में जोड़ा गया। उन्होंने ट्रस्ट के अधिकृत प्रतिनिधियों के रूप में भी काम करना शुरू कर दिया और इसकी ओर से बृहन्मुंबई नगर निगम, महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण, चैरिटी आयुक्त और मुंबई पुलिस जैसे सरकारी निकायों और नियामक प्राधिकरणों के विभिन्न अधिकारियों के साथ संवाद करना शुरू कर दिया। डीएमटी कर्मचारियों के वेतन और अन्य ख़र्चों का भुगतान सीधे नोवेक्स ट्रेडिंग के बैंक खातों से किया जाने लगा जो एक लिमिटेड लायबल पार्टनरशीप है जो रिलायंस समूह का हिस्सा है।

अब, रिलायंस के तीन अधिकारियों को ट्रस्टी के रूप में पुष्टि करने के लिए नियुक्ति के प्रस्ताव को चैरिटी आयुक्त द्वारा अनुमोदित किया जाना था। इसके लिए, उन्होंने मई 2022 में एक परिवर्तन रिपोर्ट दायर की। इसके बाद तो इस तरह की घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गई।

 

कोई आसान रास्ता नहीं

जय, उनके पिता सुरेश तुलसीदास वसनजी और मां आशा सुरेश वसनजी सहित वसनजी परिवार के सदस्यों ने चैरिटी कमिश्नर के समक्ष इस परिवर्तन रिपोर्ट का विरोध किया, जिसमें 5 मई 1953 की एक “कंसेंट डिक्री” का हवाला दिया गया था। इसमें कहा गया था कि डीएमटी में ट्रस्टियों की संख्या जो संस्थापक परिवार के सदस्य नहीं हैं, उन्हें अधिकतम दो तक सीमित रखा जाएगा। यह एक ऐसा विवरण था जिसे रिलायंस समूह ने ध्यान नहीं दिया था। जैसा कि जय ने इस लेखक को बताया: “कंसेंट डिक्री के अनुसार, गैर-वसनजी परिवार के केवल दो सदस्य हो सकते हैं जबकि रिलायंस ने तीन गैर-वसनजी परिवार के सदस्यों को ट्रस्टी के रूप में लाने की कोशिश की।”

फिर, दिसंबर 2022 में वसनजी परिवार के सदस्यों ने चैरिटी कमिश्नर के पास अपनी स्वयं की परिवर्तन रिपोर्ट दाखिल की जिसमें डीएमटी के ट्रस्टियों में परिवर्तन की सूचना कार्यालय को दी गई। इसके बाद, रिलायंस ने चैरिटी कमिश्नर के समक्ष इसे रद्द करने का प्रयास किया। जय कहते हैं, “रिलायंस समूह के नामांकित व्यक्तियों को एहसास हुआ कि ट्रस्ट की संपत्ति पर नियंत्रण उनके हाथों से निकल सकता है और जनवरी 2023 में उन्होंने दावा किया कि डीएमटी में कोई ट्रस्टी नहीं है।” चूंकि इसके तीन नोमिनी इस्तीफ़ा दे चुके थे इसलिए चैरिटी कमिश्नर को बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट की धारा 47 के तहत “जनता से आवेदन आमंत्रित करने चाहिए।” ये बात ट्रस्ट के आवेदन में कही गई है। तुरंत ही चैरिटी कमिश्नर ने ट्रस्ट के दिन-प्रतिदिन के संचालन के लिए एक प्रशासक नियुक्त किया।

अप्रैल में चैरिटी कमिश्नर ने अखबारों में एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया जिसमें उन लोगों से आवेदन मांगे गए जो ट्रस्टी बनना चाहते थे। ट्रस्ट और इसकी संपत्तियों को अपने क़ब्ज़े में लेने के अपने शुरुआती प्रयास को विफल करने के साथ, यह रिलायंस समूह का अंतिम निर्णय हो सकता था कि उसके प्रतिनिधि डीएमटी के ट्रस्टी बनने के लिए आवेदन करें।

इस बीच, डीएमटी पर दबाव बढ़ रहा था, बीएमसी ने ट्रस्ट को एक औपचारिक नोटिस जारी किया था कि उसकी इमारतें असुरक्षित हो गई हैं और उन्हें तत्काल मरम्मत की आवश्यकता है। प्रशासक की नियुक्ति के साथ ही ट्रस्ट की जनोन्मुख गतिविधियां भी रुक गईं। जय कहते हैं, “कैंसर रोगियों के सैकड़ों परिवारों ने सेनेटोरियम में आना बंद कर दिया।” डीएमटी और रिलायंस प्रोजेक्ट्स एंड प्रॉपर्टी मैनेजमेंट के बीच “लीव एंड लाइसेंस” समझौता याद है? इसके तहत, आरपीपीएम ने डीएमटी को 4.5 लाख रुपये का मासिक पट्टा किराया दिया। जय कहते हैं, “इससे ट्रस्ट का धर्मार्थ चरित्र बदल गया और इसकी परोपकारी गतिविधियां रुक गईं।”

जय और उनके परिवार ने बॉम्बे हाई कोर्ट में एक रिट याचिका में चैरिटी कमिश्नर के नोटिस के साथ-साथ रिलायंस द्वारा बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट की धारा 47 को लागू करने के प्रयासों को चुनौती दी। अदालत ने 2024 के अगस्त में सभी क़ानूनी कार्रवाई पर स्थगन आदेश जारी किया। मामला अभी लंबित है।

फोन से संपर्क करने पर के. राजा ने कहा कि कानूनी विवाद को लेकर उन्हें कोई टिप्पणी नहीं करनी है। उनके एक करीबी व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर इस लेखक से बात करते हुए कहा कि रिलायंस समूह का “इस विवाद से कोई लेना-देना नहीं है” और “अब सब कुछ चैरिटी कमिश्नर पर निर्भर है”।

रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुख्य वित्तीय नियंत्रक एल.वी. मर्चेंट ने कहा कि “पिछले एक साल या उससे भी अधिक समय से हमारा (संभवतः रिलायंस समूह का) इस संपत्ति से कोई लेना-देना नहीं है”। उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता कि जय वसनजी उन्हें और उनके सहयोगियों को लगातार ईमेल क्यों कर रहे हैं। “हम इस [विवाद] पर अपना समय और बर्बाद नहीं करना चाहते।”

इस स्टोरी के लेखक डेढ़ साल से इस पर काम कर रहे हैं। रिलायंस समूह के आधिकारिक प्रवक्ता को भेजे गए तीन ईमेल (पहला 27 जनवरी 2023 को, दूसरा 11 सितंबर 2024 को और तीसरा हाल ही में शनिवार को) का कोई जवाब नहीं मिला है। जैसे ही कोई जवाब मिलेगा, इस लेख को अपडेट कर दिया जाएगा।

क्या रिलायंस ने हार मान ली है? यह निश्चित रूप से कहना असंभव है, हालांकि ऐसा लगता है। फिलहाल, जय अदालत द्वारा दी गई राहत से उत्साहित होकर महाभारत से उदाहरण देते हुए कहते हैं कि “जिस तरह भगवान पांडवों के साथ थे, उसी तरह इस लड़ाई में भी, सर्वशक्तिमान मेरे परिवार के साथ खड़े रहेंगे”। कहा जाता है कि विश्वास पहाड़ों को हिला सकता है, लेकिन इस मामले में यह हो सकता है कि गोलियत (रिलायंस) डेविड (डीएमटी) के साथ बड़ी लड़ाई की परेशानी नहीं लेना चाहता है।

Featured Book: As Author
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Crony Capitalism and the Ambanis
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