कपड़ा उद्योग पर मंडराता संकट- भाग 2 परंजॉय गुहा ठाकुरता और आयुष जोशी December 24, 2025 कपड़ा उद्योग पर मंडराता संकट- भाग 2 ‘डंपिंग का मिथक’ DGTR की जांच का एक अहम सवाल यह है कि क्या विदेशी सप्लायर सचमुच भारतीय बाजार में MEG की “डंपिंग” कर रहे हैं, या फिर यह सिर्फ उनकी ज्यादा दक्षता और उत्पादकता का नतीजा है कि उनका माल RIL, IOC और IGL द्वारा बनाए गए MEG से अधिक प्रतिस्पर्धी दिखता है। डाउनस्ट्रीम इंडस्ट्री द्वारा जमा किए गए आँकड़े एक अलग ही तस्वीर पेश करते हैं: 2024 और 2025 में MEG की कीमतों के
कपड़ा उद्योग पर मंडराता संकट- भाग 1 परंजॉय गुहा ठाकुरता और आयुष जोशी December 22, 2025 कपड़ा उद्योग पर मंडराता संकट- भाग 1 1 पॉलिस्टर पावर प्ले मोनो एथिलीन ग्लाइकोल (MEG) को लेकर इस समय एक बड़ी खींचतान जारी है। यह भारत की मैन–मेड फाइबर इंडस्ट्री के लिए अहम कच्चा माल है और मौजूदा हालात देश के टेक्सटाइल सेक्टर की नींव को हिलाने की हालत में पहुंच गए हैं। MEG की घरेलू मांग और आपूर्ति के बीच लगभग 40 प्रतिशत का भारी अंतर है, और सरकार की एक प्रस्तावित नीति इस संकट को और गहरा करने की आशंका पैदा करती है।
18वीं लोकसभा का शीतकालीन सत्र शुक्रवार 19 दिसंबर 2025 को ख़त्म हो गया। इस सत्र को उसकी चर्चाओं के लिए नहीं, बल्कि स्थापित नियमों को व्यवस्थित तरीक़े से ख़त्म करने के लिए याद किया जाएगा। सिर्फ 19 दिनों में, संसद क़ानून बनाने वालों की चर्चा करने वाली सभा से बदलकर केवल औपचारिक प्रक्रियाओं को मंज़ूरी देने वाली इकाई बनकर रह गई। यह सत्र विवादित क़ानूनों को ज़बरदस्ती पास कराने और नेतृत्व की स्पष्ट कमी के लिए जाना जाएगा। इसने संसद को एक तरह से “मज़ाक” बना कर रख दिया। माहौल चिंताजनक था। जब देश की राजधानी
इन तीनों—डोनाल्ड ट्रंप, व्लादिमीर पुतिन और मुकेश अंबानी—में क्या समानता है? पहली नजर में शायद कुछ भी नहीं। एक अमेरिका का राष्ट्रपति है, जो अपनी अप्रत्याशित नीतियों के लिए जाना जाता है; दूसरा रूस का शक्तिशाली शासक है, जो वैश्विक ऊर्जा बाज़ार पर अपनी पकड़ बनाए हुए है; और तीसरा भारत का सबसे अमीर उद्योगपति है, जिसका साम्राज्य तेल से लेकर दूरसंचार तक फैला है। लेकिन इन तीनों को एक ही धागे में पिरोने वाला एक शक्तिशाली कारक है: कच्चा तेल। और इसी तेल के चलते बने अप्रत्याशित समीकरणों ने आज भारत को एक
परंजॉय गुहा ठाकुरता और आयुष जोशी July 2, 2025 कॉरपोरेट जगत में व्हिसलब्लोअर्स की दयनीय स्थिति अपने कामों को उजागर करने के लिए संरक्षित और प्रशंसित होने के बजाय, भारतीय व्हिसलब्लोअर को प्रतिशोध, कानूनी उत्पीड़न और पेशेवर बर्बादी का सामना करना पड़ता हैं। हम प्रमुख भारतीय कंपनियों के उन तीन व्हिसलब्लोअर के बारे में लिख रहे हैं, जिनकी शिकायतों पर सुधारात्मक कार्रवाई होने के बजाय, कॉरपोरेट कदाचारों को उजागर करने के लिए, उनके खिलाफ़ ही मोर्चा खोल दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने
Originally Published in Article 14 Translated by संजय पराते अपने कामों को उजागर करने के लिए संरक्षित और प्रशंसित होने के बजाय, भारतीय व्हिसलब्लोअर को प्रतिशोध, कानूनी उत्पीड़न और पेशेवर बर्बादी का सामना करना पड़ता हैं। हम प्रमुख भारतीय कंपनियों के उन तीन व्हिसलब्लोअर के बारे में लिख रहे हैं, जिनकी शिकायतों पर सुधारात्मक कार्रवाई होने के बजाय, कॉरपोरेट कदाचारों को उजागर करने के लिए, उनके खिलाफ़ ही मोर्चा खोल दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर व्हिसलब्लोअर
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि गौतम अडानी, उनके भतीजे और उनके सहयोगियों पर अमेरिका में अभियोग चलाए जाने से भारत और दुनिया के सबसे धनी लोगों में से एक व्यक्ति की महत्वाकांक्षाओं को झटका लगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नज़दीकी रखने वाले इस प्रमुख उद्योगपति को इससे पहले कभी इस तरह से झटका नहीं लगा था। उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। और इसके साथ ही उनकी कारोबारी योजनाएं भी दांव पर हैं। जनवरी 2023 में प्रकाशित न्यूयॉर्क स्थित शॉर्ट–सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की 30,000 शब्दों की रिपोर्ट में
यह एक अलग बात है कि भारत की सबसे बड़ी निजी स्वामित्व वाली कॉर्पोरेट इकाई ने बहुत ज़्यादा प्रगति नहीं की क्योंकि सेठ दामोदर माधवजी चैरिटी ट्रस्ट (अब डीएमटी) ने समूह के प्रयासों का पुरज़ोर विरोध किया है। इस ट्रस्ट का नियंत्रण वसनजी परिवार के पास है। स्पष्ट रूप से यहां दांव बहुत ऊंचे हैं। ये संपत्ति समुद्र के सामने एक प्रमुख भूखंड है जिसका आकार लगभग 16,000 वर्ग फीट है। जानकारों के अनुसार, चूंकि यह टोनी ब्रीच कैंडी में स्थित है इसलिए इसकी कीमत 85 करोड़ रुपये से कम नहीं है और शायद यह 400 करोड़ रुपये
गोकरकोंडा नागा साईबाबा (जी.एन. साईबाबा) का जन्म 1967 में आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के अमलापुरम के एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। उनके जन्म की सही तारीख ज्ञात नहीं है, क्योंकि उनके माता-पिता ने इसे दर्ज नहीं कराया था। 12 अक्टूबर, 2024 को हैदराबाद में 57 वर्ष की आयु में उनके पित्ताशय से पथरी निकालने के लिए सर्जरी की गयी। सर्जरी के बाद की जटिलताओं के कारण साईबाबा की मृत्यु हो गई। पोलियो से पीड़ित होने के बाद, उन्होंने पाँच साल की उम्र से व्हीलचेयर का इस्तेमाल किया। एक प्रतिभाशाली छात्र
पिछले एक दशक से नरेंद्र मोदी सरकार बार-बार हिंदू राष्ट्रवाद पर आधारित एक प्रकार की प्रवासी कूटनीति पर ज़ोर देती रही है जिसने स्पष्ट रूप से उनके अनिवासी भारतीय (एनआरआई) समर्थकों को आकर्षित किया है। दिलचस्प बात यह है कि उनकी सरकार ने अब एनआरआई को दीर्घकालिक लघु बचत और निवेश सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ) योजना का लाभ उठाने से रोक दिया है। जनवरी 1979 से भारत के सभी प्रधान डाकघरों में शुरू की गई पीपीएफ योजना न केवल सावधि जमा (फिक्स्ड डिपोजिट) की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक ब्याज दर के कारण लोकप्रिय है
देश के वित्तीय बाज़ारों के नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानी सेबी के इतिहास में कभी भी इसके अध्यक्ष की विश्वसनीयता पर इतने सवाल नहीं उठाए गए जितना कि मौजूदा अध्यक्ष पर उठाया जा रहा है। हालांकि माधबी पुरी बुच पहली ऐसी महिला हैं जो सिविल सेवक नहीं हैं और निजी क्षेत्र से सेबी की अध्यक्षता करने वाली पहली व्यक्ति हैं जिन्होंने 10 अगस्त को जारी यूएस-आधारित शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च की दूसरी रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों का तुरंत जवाब दिया था लेकिन उसके बाद वे खामोश हैं। जबकि सेबी के सैकड़ों
लोकसभा चुनाव के नतीजों से परेशान नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले आम बजट में यह माना है कि देश के सामने सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक मुद्दा रोज़गार का है। भले ही सरकार ने संदिग्ध आंकड़ों का हवाला देकर यह दावा किया हो कि रोज़गार सृजन में सरकार का रिकॉर्ड इतना भी बुरा नहीं रहा है लेकिन आरोप गाए जा रहे हैं कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शीर्ष कंपनियों में इंटर्नशिप कार्यक्रम, रोज़गार से जुड़े प्रोत्साहन कार्यक्रम, निवेश को बढ़ावा देने के लिए "एंजल टैक्स" को ख़त्म करने और महात्मा गांधी
लोकसभा चुनाव के परिणाम 4 जून को आयेंगे जो मुख्य रूप से चार बड़े राज्यों- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और बिहार पर निर्भर करेंगे। आइए इस लेख के जरिये बात करते हैं बड़े राज्यों की। पहला बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश है जिसमें 80 लोकसभा सीटें हैं। उत्तर प्रदेश जनसंख्या की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य है। देश का 6 में से एक व्यक्ति उत्तर प्रदेश से है। चीन, भारत, इंडोनेशिया, ब्राजील और अमेरिका जैसे देशों के बाद जनसंख्या की दृष्टि से भारत के ही उत्तर प्रदेश का नाम आता है। जनसंख्या के हिसाब से
जिस दिन संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग परियोजना (ओसीसीआरपी) ने एक सप्ताह से भी कम समय पहले गौतम अडानी और भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) को एक प्रश्नावली भेजी थी, उसी दिन अभिजात वर्ग को होने वाले संभावित नुकसान को रोकने के लिए देश की सबसे प्रसिद्ध समाचार एजेंसी, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई), ने जल्दबाजी में योजना बनाई और इसे हिंडनबर्ग-2 रिपोर्ट करार दिया, जो कि अमेरिका की शॉर्ट-सेलिंग फर्म है और जिसने इसे 24 जनवरी में, 32,000 शब्दों की रिपोर्ट का ही दूसरा स्वरूप बताया है। इस
नई दिल्ली में सत्तारूढ़ शासन के प्रतिनिधियों ने पिछले कुछ महीनों में अहंकार से अंधे होकर एक के बाद एक कई बड़ी गलतियां की हैं। यहां पर इन गलतियों की एक छोटी सूची है जैसे कि बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाना और फिर उस संस्थान में इनकम टैक्स अधिकारियों को भेजना; गौतम अडानी के कॉर्पोरेट समूह के कामकाज के बारे में उठाए गए आरोपों पर चुप्पी बनाए रखना; लोकसभा के रिकॉर्ड में राहुल गांधी के भाषण को सेंसर करना; दिल्ली के उपमुख्यमंत्री को जेल में डालना; आम चुनाव से पहले फरवरी 2019 में हुए पुलवामा
2023-24 का बजट पेश करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अपने अपेक्षाकृत छोटे भाषण के पहले ही पैराग्राफ ने यह स्पष्ट कर दिया कि अगले आम चुनाव से पहले यह उनका आखिरी पूर्ण बजट था। उन्होंने एक "समृद्ध और समावेशी भारत" की कल्पना करने की बात की, जिसमें विकास का फल सभी क्षेत्रों और नागरिकों तक पहुंचे," विशेष रूप से युवा, महिलाओं, किसानों, अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) से संबंधित लोगों तक। यह प्रयास साफतौर पर सरकार के विरोधियों की आलोचना का मुकाबला
मार्च 2020 से भारत में व्हाट्सएप्प इंक (इसका स्वामित्व फेसबुक के हाथों में है जिसे अब मेटा के नाम से जाना जाता है) में पब्लिक पॉलिसी, डायरेक्टर के तौर पर काम करने वाले शिवनाथ ठुकराल के पास कभी ओपालिना टेक्नोलॉजीज में हिस्सेदारी हुआ करती थी. ओालिना टेक्नोलॉजीज वही कंपनी है जो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री कार्यालय, भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार के कपड़ा मंत्रालय को सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन्स उपलब्ध करा चुकी है. भारत में मेटा के प्रमुख पैरोकारों में से एक ठुकराल ने 24 अक्टूबर, 2017
उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में कुल 403 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों को कुल 273 सीटें हासिल हुई। इनमें से 255 सीटें अकेले भाजपा को मिलीं। समाजवादी पार्टी को सिर्फ 111 सीटें मिलीं। अगर सपा के सहयोगियों की सीटों की संख्या भी इसमें जोड़ दें तो कुल संख्या 125 पर पहुंचती है। हालांकि, सपा गठबंधन के सीटों की संख्या भाजपा गठबंधन के सीटों की संख्या से काफी कम है लेकिन इस चुनाव परिणाम का विस्तृत विश्लेषण करने पर पता चलता है कि अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा गठबंधन की हार और
कोविड महामारी की पृष्ठभूमि में वित्त वर्ष 2022-23 का बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अतिशय आशावाद का परिचय दिया है, जिसमें बहुत कुछ अस्पष्ट है।सबसे पहले आर्थिक विकास दर की बात करें। हकीकत यह है कि महामारी के पहले से ही हमारी आर्थिक विकास दर में कमी दिख रही थी। महामारी के कारण वर्ष 2020-21 में हमारी आर्थिक विकास दर में 6.6 प्रतिशत की कमी आई। इस साल आर्थिक विकास दर 9.2 फीसदी रहने की उम्मीद है, जबकि अगले वित्त वर्ष में आर्थिक विकास दर आठ से साढ़े आठ प्रतिशत के आसपास रहने की बात कही
पेगासस स्पाइवेयर के जरिए जासूसी के आरोपों की जांच की पहल सरकार की तरफ से नहीं होने के बाद पहले चार प्रमुख लोगों ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और इस मामले की जांच कराने की मांग की। इनमें हिंदू के वरिष्ठ पत्रकार रहे नरसिम्हन राम, वरिष्ठ पत्रकार शशि कुमार, वकील मनोहर लाल शर्मा और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास शामिल हैं। इन लोगों ने यह पहल जनहित में की। लेकिन अब पेगासस स्पाइवेयर के शिकार हुए चार पत्रकारों परंजॉय गुहा ठाकुरता यानी मैं, सैयद निसार मेहदी अबदी
एक दशक से पहले तक 25 जून, 1975 को लगाए गए आपातकाल की यादें धूमिल होती जा रही थीं। जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल के लिए माफी मांगी तो लगा कि हमारे इतिहास का एक भयावह काल खत्म हो गया है और अब यह वापस कभी नहीं आएगा। 46 साल बाद यह एहसास हो रहा है कि हम गलत थे। आपातकाल की छाया एक बार फिर से दिख रही है। हालांकि, इसका रूप अलग है। अगर आपातकाल एक ‘झटका’ था तो आज की स्थिति ‘हलाल’ की तरह है जिसमें लोकतंत्र को हमारी राजव्यवस्था से अलग किया जा रहा है। कई तरह से देखा जाए तो यह अधिक सूक्ष्म और खतरनाक है। आपातकाल
कोरोना महामारी की दूसरी लहर की वजह से पूरे देश में जो संकट पैदा हुआ है, उसमें कुछ पारंपरिक मीडिया संस्थानों और सोशल मीडिया पर भी ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हवा बदलने लगी है। हालांकि, नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब से ही मीडिया का एक बड़ा वर्ग हमेशा उनके साथ खड़ा नजर आता था। जैसे-जैसे 2014 का लोकसभा चुनाव नजदीक आता गया, नरेंद्र मोदी के पक्ष में खबरें प्रकाशित और प्रसारित करने वाले मीडिया संस्थानों की संख्या बढ़ती गई। भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने केंद्र में सात साल का कार्यकाल पूरा किया है। इस मौके पर भले ही औपचारिक तौर पर सरकार और सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की ओर से बड़े आयोजन नहीं किए गए हों लेकिन हर तरह से यह बताने की कोशिश की जा रही है कि मोदी सरकार ने सात साल में वह सब कर दिखाया है जो पहले की सरकारों ने 70 साल में नहीं किया था। जबकि सच्चाई यह है कि इस वक्त देश एक बहुत बड़े संकट से गुजर रहा है। 2020 में कोविड-19 की वजह से शुरू हुई परेशानियां खत्म भी नहीं हुई थीं कि इस साल
पश्चिम बंगाल में चल रहे विधानसभा चुनावों के परिणाम का असर सिर्फ इस प्रदेश की राजनीति पर नहीं पड़ने वाला है बल्कि इस पर भारत में लोकतंत्र का भविष्य निर्भर करता है। अगर बंगाल में पहली बार भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई तो इससे यह तय हो जाएगा कि नरेंद्र मोदी का विपक्ष मुक्त भारत बनाने का अभियान रूकने वाला नहीं है। साथ ही यह भी साबित हो जाएगा ‘चुनाव आधारित निरंकुशता’ कायम करने का उनका काम भी थमने वाला नहीं है। अगर भाजपा को बहुमत नहीं मिलता है और इसके बावजूद भी वह सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है
मार्च, 2020 के तीसरे हफ्ते से लेकर जून के अंत तक में भारत ने लोगों का सबसे बड़ा पलायन देखा। इसे सिर्फ संख्या के दायरे में बांधकर नहीं देखा जा सकता। क्योंकि आंकड़ों के मूल में करोड़ों लोग हैं। इनमें बहुत सारे छोटे बच्चे, बुजुर्ग महिलाओं और पुरुषों के अलावा युवा लोग भी हैं। लोगों की याददाश्त में ‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र’ ने कभी ऐसी अफरा-तफरी, परेशानी और मायूसी को नहीं देखा था। यह मुश्किल ऐसी थी जिसे टाला जा सकता था। अगर हमारे देश के शासक गरीबों के लिए थोड़े कम अधिनायकवादी और कम उदासीन होते और साथ
किसान आंदोलन के 100 दिन हो गए हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन तीन विवादित कृषि क़ानूनों को वापस लेने के लिए तैयार नहीं दिखते हैं। ऐसा लगता है कि दोनों पक्षों ने अपना रुख कड़ा कर लिया है। क्या आपको लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने अब तक के तकरीबन सात साल के कार्यकाल की सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं? मोदी और उनके सहयोगी यह दावा करते हैं कि ये क़ानून किसानों की बेहतरी के लिए हैं। किसानों को या यों कहें कि किसानों के एक बड़े वर्ग को यह लगता है कि यह एक जहरीला उपहार है। मेरे समझ
यह केवल पंजाब के किसानों का आंदोलन नहीं है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड सहित कम से कम छह राज्यों से किसान दिल्ली आने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें से तीन राज्यों में भाजपा का शासन है, इन तीनों राज्यों का प्रशासन ही किसानों को दिल्ली आने से रोकता हुआ दिखा है। किसानों ने पहले ही कह दिया था कि हम दिल्ली आ रहे हैं, लेकिन सरकार ने उन्हें मनाने के लिए क्या किया? प्रश्न है, आखिर देश के किसान क्यों इतने उत्तेजित हैं? उसके कुछ कारण हैं, जो बहुत वर्षों से किसानों की उपेक्षा की वजह से
पिछले साल दो बजट पेश हुए थे। एक अंतरिम बजट फरवरी में पेश किया गया था, उसके बाद देश में लोकसभा चुनाव हुए और जुलाई में एक बार फिर मोदी सरकार ने अपना बजट पेश किया। दोनों बजट के बीच छह महीने का अंतर था, पर इन छह महीनों में ही आंकड़ों में बदलाव दिख गया। सरकार की आय और खर्च के बीच एक लाख, 80 हजार करोड़ रुपये का अंतर आ गया। इतने कम समय में बजट में आए इस बड़े अंतर को सरकार ने ही अपने आंकड़ों से जाहिर कर दिया। अंतरिम बजट में आय और खर्च के जो आंकड़े दिए गए थे, वे सही थे या पूर्ण बजट वाले आंकड़े सही थे? यह अपने
अरुण कुमार रॉय नहीं रहे। एके रॉय के नाम से वे खासे लोकप्रिय थे। मजदूरों के नेता के तौर पर उनकी पहचान रही है। वामपंथी धारा के जो ट्रेड यूनियन नेता हुए हैं, उनमें एके रॉय की हस्ती काफी बड़ी थी। पूरी जिंदगी मजदूरों के हकों और हितों के लड़ने वाले एके रॉय ने बीते रविवार को झारखंड के धनबाद में आखिरी सांसें लीं। 1935 में पैदा हुए एके रॉय का जीवन 84 साल का रहा। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की शिक्षा हासिल करने के बाद उच्च शिक्षा जर्मनी से हासिल की। पढ़ाई करके लौटने के बाद उन्होंने
बेरोज़गारी सबसे बड़ी चुनौती सबसे पहली चुनौती बेरोज़गारी की है. युवाओं के लिए जिस रफ़्तार से रोज़गार बढ़ने चाहिए वो नहीं बढ़ रहे हैं. 2013-14 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि युवाओं के लिए हर साल 1-2 करोड़ नई नौकरियां लाएंगे, लेकिन हमारे पास कोई ऐसे सबूत नहीं हैं कि इस रफ़्तार से नई नौकरियां आ रही हैं. एक समय जिन क्षेत्रों में नई नौकरियां आ रही थीं वहां भी इनका आना कम हो गया. एक है आईटी सेक्टर, दूसरा टेलीकॉम सेक्टर. सरकार ने आंकड़ा भी वापस ले लिया, वो भी काफी विवादित है. नेशनल सैंपल
फेसबुक कोई साधारण कारोबारी कंपनी नहीं है। हाल ही में न्यू यॉर्क टाइम्स ने फेसबुक के बारे में जानकारी दी, ‘एक दशक से थोड़े ही अधिक वक्त में फेसबुक ने 2.2 अरब लोगों को जोड़ने का काम किया है। यह अपने आप में एक वैश्विक राष्ट्र बन गया है। पूरी दुनिया में चुनावी अभियानों, विज्ञापन अभियानों और रोजमर्रा के जीवन को इसने बदलने का काम किया है। इस प्रक्रिया में फेसबुक ने निजी डाटा का सबसे बड़ा जखीरा तैयार कर लिया है। फोटो, संदेशों और लाइक्स का जो अकूत भंडार इसने बनाया है उससे यह दुनिया की शीर्ष कंपनियों की
तथ्यों की जांच का काम करने वाली वेबसाइट ऑल्ट न्यूज के संपादक प्रतीक सिन्हा कहते हैं, ‘नरेंद्र मोदी का चुनाव अभियान सकारात्मक ढंग से विकास के गुजरात मॉडल पर शुरू हुआ लेकिन बाद में कांग्रेस की आलोचनाओं में सिमट गया। मई, 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद भाजपा समर्थक जानबूझकर फर्जी खबरें प्रकाशित करने लगे। इन लोगों ने सरकार और पार्टी की आलोचना करने वालों को ट्रोल करना शुरू कर दिया। 2016 तक यह नियंत्रण से बाहर चला गया और एक समस्या बन गया।’ वे कहते हैं कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने में भाजपा
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे नितिन गडकरी के करीबी विनीत गोयनका उस वक्त पार्टी की सोशल मीडिया रणनीति बना रहे थे। भाजपा ने किस तरह से मोदी की छवि मजबूत करने के लिए फेसबुक और व्हाट्सएप का इस्तेमाल किया, इस बारे में उन्होंने बातचीत की। गोयनका अभी गडकरी के नेतृत्व वाले सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय में आईटी कार्यबल के प्रमुख हैं। वे पीयूष गोयल के रेल मंत्रालय के तहत आने वाले सेंटर फॉर रेलवे इंफॉर्मेशन सिस्टम के गवर्निग काउंसिल के भी सदस्य हैं। हमने गोयनका से सीधा सवाल पूछा कि फेसबुक और भाजपा
हमें हर स्रोत से यही जानकारी मिली की राजेश जैन मुंबई के लोअर परेल के अपने कार्यालय से स्वतंत्र तौर पर काम कर रहे थे और उन्होंने नरेंद्र मोदी के अभियानों में अपने पैसे लगाए थे। जून, 2011 में उन्होंने एक लेख लिखकर बताया था कि वे भाजपा के लिए ‘प्रोजेक्ट 275 फॉर 2014’ चला रहे हैं। भाजपा को 2014 के लोकसभा चुनावों में 282 सीटें मिलीं। यही राजेश जैन नरेंद्र मोदी सरकार के कामकाज को लेकर अब उतने उत्साहित नहीं दिखते हैं। आजकल वे ‘धन वापसी’ के नाम से एक अभियान चला रहे हैं। इसके तहत सरकारी एजेंसियों, रक्षा
2014 के लोकसभा चुनावों के पहले मुंबई के उद्यमी राजेश जैन ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के लिए मतदाताओं का एक डाटाबेस तैयार किया। इसके जरिए लक्षित वर्ग को फेसबुक और व्हाट्सएप के जरिए संदेश भेजा गया। मतदाता सूची, मतदान केंद्रों और निर्वाचन आयोग जैसे स्रोतों की मदद से यह डाटाबेस तैयार हुआ था। इसके जरिए राजेश जैन और उनकी टीम ने भारतीय जनता पार्टी को मजबूत और कमजोर सीटों और यहां तक की मतदान केंद्रों की पहचान करने में मदद की। इस डाटाबेस की खास बात यह थी इसमें जाति, भौगोलिक आधार और यहां
जनवरी, 2009 में भाजपा को एसएमएस भेजने के लिए किसी कंपनी की तलाश थी। इस प्रक्रिया में मौजूदा रेल मंत्री पीयूष गोयल के संपर्क में उस वक्त नेटकोर के राजेश जैन आए। राजेश जैन की कंपनी को यह काम मिल गया। राजेश जैन का परिवार पीढ़ियों से भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करता आया है। यह ठेका मिलने के कुछ समय बाद राजेश जैन ने पूर्व बैंकर अमित मालवीय, वकील हितेश जैन और अन्य लोगों के साथ मिलकर एक टीम बनाई। अमित मालवीय अभी भाजपा आईटी प्रकोष्ठ के प्रमुख हैं। राजेश जैन ने जनवरी, 2009 में बनी इस टीम को नाम दिया
वैश्विक स्तर पर पिछले दो साल फेसबुक के लिए मुश्किल रहे हैं। पूरी दुनिया में फेसबुक की निगरानी बढ़ी है। कई देशों में फेसबुक को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। तकनीक उद्योग के जरिए जो गड़बड़ियां की जा रही हैं, फेसबुक को उसका सबसे बड़ा उदाहरण माना जा रहा है। फेसबुक और इसके दूसरे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर यह आरोप लग रहा है कि इनके जरिये लोगों की राय बदलने की कोशिश की जा रही है और चुनावों के नतीजे बदलने का प्रयास भी हो रहा है। साथ ही इन पर यह आरोप भी लग रहा है कि ये हिंसा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं और
भारत में फेसबुक द्वारा कार्यालय खोले जाने के दो साल बाद यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन गया है जिसके जरिये अधिकांश लोग ऑनलाइन राजनीतिक संवाद करने लगे। खास तौर पर युवा वर्ग। इस वजह से फेसबुक इस्तेमाल करने वालों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। 2011 में 1.5 करोड़ लोग फेसबुक इस्तेमाल करते थे। उसके अगले साल फेसबुक इस्तेमाल करने वालों की संख्या 2.8 करोड़ हो गई। इनमें से अधिकांश लोग 17 से 35 साल आयु वर्ग वाले थे। अक्टूबर, 2014 में फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग हरियाणा को चंद्रौली गांव में हेलीकॉप्टर से
आईआरआईएस नॉलेज फाउंडेशन और इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने अप्रैल, 2013 में एक अध्ययन किया था। इसमें यह दावा किया गया था कि देश के कुल 543 लोकसभा सीटों में से 160 ‘उच्च प्रभाव’ वाली लोकसभा सीटें फेसबुक से प्रभावित हो सकती हैं। उस वक्त कई लोगों ने इस दावे को खारिज किया था। लेकिन इस बात में किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि पिछले साढ़े पांच साल में सोशल मीडिया और खास तौर पर व्हाट्सएप के इस्तेमाल में काफी बढ़ोतरी हुई है। अब विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को यह लगता है कि सोशल मीडिया का न
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद फेसबुक ने उनकी मदद की ताकि सोशल मीडिया पर सबसे अधिक फॉलोअर्स वाले नेता वे बन सकें। ‘वर्ल्ड लीडर्स ऑन फेसबुक’ अध्ययन में मई, 2018 में यह बात सामने आई कि फेसबुक पर नरेंद्र मोदी के 4.32 करोड़ फॉलोअर हैं। उनके बाद दूसरे स्थान पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप थे। लेकिन उनके फॉलोअर की संख्या मोदी के मुकाबले तकरीबन आधी यानी 2.31 करोड़ थी। 2014 में लोकसभा चुनावों की घोषणा के दिन से लेकर आखिरी चुनाव होने तक भारत में कुल 2.9 करोड़ लोगों ने 22.7 करोड़ पोस्ट, कमेंट
सिंतबर, 2017 में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने फेसबुक पर यह आरोप लगाया कि वह उनके खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। दुनिया के सबसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग ने इसका जवाब दिया। जुकरबर्ग ने प्रतिक्रिया में कहा, ‘मैं राष्ट्रपति ट्रंप के ट्विट का जवाब देना चाहता हूं जिसमें उन्होंने दावा किया है कि फेसबुक ने हमेशा उनके खिलाफ काम किया है। हर दिन मैं काम करता हूं लोगों को आपस में जोड़ने के लिए और हर किसी के लिए एक समाज बनाने के लिए। हम हर तरह के
मिशी चौधरी सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर की कानूनी निदेशक हैं। नई दिल्ली और न्यूयॉर्क में रहने वाली मिशी चौधरी डिजिटल अधिकारों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनके जैसे स्वतंत्र पर्यवेक्षकों को यह लगता है कि फेसबुक अपने प्लेटफॉर्म को लोगों के इस्तेमाल के लिए सुरक्षित बनाने की दिशा में काफी कुछ कर सकता है। वे कहती हैं कि फेसबुक को पहला काम तो यही करना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति को बगैर उसकी अनुमति के किसी भी फेसबुक समूह का सदस्य नहीं बनाया जा सके। अभी बगैर पहले से अनुमति लिए किसी को किसी
व्हाट्सऐप क्या लोगों की सुरक्षा के बारे में चिंता करता है? यह सवाल जब व्हाट्सऐप से हमने पूछा तो उनके एक प्रवक्ता ने हमें तुरंत जवाब भेजा और कहा कि यह प्लेटफॉर्म जनता की सुरक्षा को लेकर गंभीर है। उन्होंने यह भी कहा कि व्हाट्सऐप भारत के शोध करने वालों के साथ मिलकर फर्जी खबरों का प्रसार रोकने और जन सुरक्षा अभियान चलाने की दिशा में काम कर रहा है। इसके कुछ समय बाद व्हाट्सऐप ने संदेशों के साथ ‘फॉरवर्ड’ टैग देना शुरू किया। इसका मतलब यह होता है कि संदेश भेजने वाले ने खुद यह संदेश नहीं बनाया बल्कि उसे भी
वर्ष 2018 में फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग को पांच देशों की सरकारों ने व्यक्तिगत तौर पर एक अंतरराष्ट्रीय समिति के सामने पेश होकर फर्जी खबरें और गलत सूचनाओं के प्रसार के बारे में अपनी बात रखने को कहा। ये पांच देश थे- अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, आयरलैंड और ब्रिटेन। वहीं यूरोप के कई देशों में, अमेरिका में और सिंगापुर में फेसबुक के अधिकारियों की वहां के कानून बनाने वालों ने तीखी आलोचनाएं की हैं। इन्हें यह निर्देश दिया गया कि ये ज्यादा जिम्मेदारी के साथ काम करें। इन्हें यह भी
एनडीटीवी इंडिया भारत का एक प्रमुख हिंदी समाचार चैनल है। इस चैनल पर जाने-माने पत्रकार रवीश कुमार का कार्यक्रम ‘प्राइम टाइम’ काफी लोकप्रिय है। इस चैनल के एक सूत्र में अपनी पहचान नहीं जाहिर करने की शर्त पर एक बड़ी अजीब सी बात बताई। इन्होंने बताया कि हम लोगों को एक बात बड़ी अजीब सी लगने लगी कि हमारे बेहद लोकप्रिय कार्यक्रम ‘प्राइम टाइम’ को लेकर फेसबुक पर होने वाली हलचल तब बहुत धीमी हो जाती थी जब कार्यक्रम के किसी संस्करण में सरकार की आलोचना करने वाली खबरें चलाई जाती थीं। कार्यक्रम में एक दिन पेट्रोल
भारत में कई पत्रकार और मीडिया संस्थान फेसबुक पर यह आरोप लगाते हैं कि उनकी खबरों को जानबूझकर इस प्लेटफॉर्म पर रोका जाता है। कई पत्रकारों का यह भी कहना है कि कुछ मौकों पर उन्हें अपने फेसबुक अकाउंट में लॉग इन ही नहीं करने दिया जाता। जिन पत्रकारों के साथ फेसबुक ने ऐसा किया, उन सबमें एक बात समान है। ये सभी लोग सत्ताधारी पार्टी और मोदी सरकार के विरोध में लिख रहे थे। इनमें ‘जनता का रिपोर्टर’ के रिफत जावेद, ‘जनज्वार’ की प्रेमा नेगी और अजय प्रकाश, ‘कारवां डेली’ के कई पत्रकार और ‘बोलता हिंदुस्तान’ के
ये आरोप अक्सर लगते हैं कि नरेंद्र मोदी के समर्थक ऑनलाइन माध्यमों के जरिये गलत सूचनाएं फैलाते हैं। उन पर यह भी आरोप है कि कई बार वे यह काम कंटेंट मार्केटिंग कंपनियों के साथ मिलकर करते हैं। दूसरी तरफ कुछ मीडिया संस्थानों और पत्रकारों की यह शिकायत है कि अगर वे सत्ताधारी पार्टी या केंद्र की मौजूदा सरकार की आलोचना करने वाली खबरें करते हैं तो उन्हें फेसबुक जानबूझकर दरकिनार करता है। इनका कहना है कि कई बार तो फेसबुक सेंसर यानी काट-छांट का काम भी करता है। इसे कुछ उदाहरणों के जरिए समझा जा सकता है। दिल्ली
22 सितंबर, 2018 को भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजस्थान के कोटा में अपनी पार्टी के सोशल मीडिया वॉलिंटियर्स से संवाद कर रहे थे। उन्होंने इस दौरान कहा, ‘हम जनता तक हर संदेश पहुंचा पाने में सक्षम हैं। चाहे वह अच्छा हो या बुरा। चाहे वह सच्चा हो या फर्जी।’ अमित शाह के इस बयान के मायनों को समझना के लिए यह याद करना होगा कि सबसे पहले उन्होंने ऐसी बातें 2017 के फरवरी-मार्च में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के पहले कही थीं। उन्होंने कहा था कि भाजपा के समर्थकों ने बहुत बड़े व्हाट्सऐप समूह
भारत का बजट सोमवार को आ रहा है. लगभग हर टीवी चैनल, हर अख़बार बजट की ख़बरों से रंगे हुए हैं. पर आम आदमी के लिए यह कवरेज और बजट बेतुका है. पर क्यों? इसके पाँच बड़े कारण निम्न हैं. वित्तीय घाटा: सारे वित्तमंत्री और विशेषज्ञ बजट में वित्तीय घाटे के बारे में ख़ूब बोलते हैं. भारत की सभी सरकारें साल 2008 तक क़ानूनन देश के वित्तीय घाटे को कम कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीन फ़ीसदी के बराबर लाने के लिए बाध्य थीं. ऐसा फ़िस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट 2003 के तहत किया जाना था. लेकिन
मूर्ख दिवस (एक अप्रैल) से शुरू होने वाले साल के 12 महीनों के लिए केंद्र सरकार का बजट जल्द पेश होने वाला है. यह वित्त मंत्री अरुण जेटली का तीसरा बजट है. इसके बाद 2019 के आम चुनाव के पहले अंतरिम बजट से पहले वह दो बजट और पेश करेंगे. लेकिन अर्थव्यवस्था शायद वह आखिरी चीज़ होगी, जो आबादी के बड़े पैमाने के दिमाग़ में है. जाटों के आंदोलन ने अचानक उत्तर भारत के एक से ज़्यादा औद्योगिक इलाक़ों में उथल-पुथल मचा दी. वाहन निर्माण करने वाली असेंबली लाइन बंद हो गईं. आम जनजीवन सिर्फ़ हरियाणा नहीं बल्कि राष्ट्रीय