2023-24 का बजट पेश करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अपने अपेक्षाकृत छोटे भाषण के पहले ही पैराग्राफ ने यह स्पष्ट कर दिया कि अगले आम चुनाव से पहले यह उनका आखिरी पूर्ण बजट था। उन्होंने एक "समृद्ध और समावेशी भारत" की कल्पना करने की बात की, जिसमें विकास का फल सभी क्षेत्रों और नागरिकों तक पहुंचे," विशेष रूप से युवा, महिलाओं, किसानों, अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) से संबंधित लोगों तक। यह प्रयास साफतौर पर सरकार के विरोधियों की आलोचना का मुकाबला
मार्च 2020 से भारत में व्हाट्सएप्प इंक (इसका स्वामित्व फेसबुक के हाथों में है जिसे अब मेटा के नाम से जाना जाता है) में पब्लिक पॉलिसी, डायरेक्टर के तौर पर काम करने वाले शिवनाथ ठुकराल के पास कभी ओपालिना टेक्नोलॉजीज में हिस्सेदारी हुआ करती थी. ओालिना टेक्नोलॉजीज वही कंपनी है जो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री कार्यालय, भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार के कपड़ा मंत्रालय को सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन्स उपलब्ध करा चुकी है.भारत में मेटा के प्रमुख पैरोकारों में से एक ठुकराल ने 24 अक्टूबर, 2017
उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में कुल 403 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों को कुल 273 सीटें हासिल हुई। इनमें से 255 सीटें अकेले भाजपा को मिलीं। समाजवादी पार्टी को सिर्फ 111 सीटें मिलीं। अगर सपा के सहयोगियों की सीटों की संख्या भी इसमें जोड़ दें तो कुल संख्या 125 पर पहुंचती है। हालांकि, सपा गठबंधन के सीटों की संख्या भाजपा गठबंधन के सीटों की संख्या से काफी कम है लेकिन इस चुनाव परिणाम का विस्तृत विश्लेषण करने पर पता चलता है कि अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा गठबंधन की हार और
कोविड महामारी की पृष्ठभूमि में वित्त वर्ष 2022-23 का बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अतिशय आशावाद का परिचय दिया है, जिसमें बहुत कुछ अस्पष्ट है।सबसे पहले आर्थिक विकास दर की बात करें। हकीकत यह है कि महामारी के पहले से ही हमारी आर्थिक विकास दर में कमी दिख रही थी।महामारी के कारण वर्ष 2020-21 में हमारी आर्थिक विकास दर में 6.6 प्रतिशत की कमी आई। इस साल आर्थिक विकास दर 9.2 फीसदी रहने की उम्मीद है, जबकि अगले वित्त वर्ष में आर्थिक विकास दर आठ से साढ़े आठ प्रतिशत के आसपास रहने की बात कहà¥
पेगासस स्पाइवेयर के जरिए जासूसी के आरोपों की जांच की पहल सरकार की तरफ से नहीं होने के बाद पहले चार प्रमुख लोगों ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और इस मामले की जांच कराने की मांग की। इनमें हिंदू के वरिष्ठ पत्रकार रहे नरसिम्हन राम, वरिष्ठ पत्रकार शशि कुमार, वकील मनोहर लाल शर्मा और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास शामिल हैं। इन लोगों ने यह पहल जनहित में की। लेकिन अब पेगासस स्पाइवेयर के शिकार हुए चार पत्रकारों परंजॉय गुहा ठाकुरता यानी मैं, सैयद निसार मेहदी अबदà¥
एक दशक से पहले तक 25 जून, 1975 को लगाए गए आपातकाल की यादें धूमिल होती जा रही थीं। जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल के लिए माफी मांगी तो लगा कि हमारे इतिहास का एक भयावह काल खत्म हो गया है और अब यह वापस कभी नहीं आएगा। 46 साल बाद यह एहसास हो रहा है कि हम गलत थे। आपातकाल की छाया एक बार फिर से दिख रही है। हालांकि, इसका रूप अलग है। अगर आपातकाल एक ‘झटका’ था तो आज की स्थिति ‘हलाल’ की तरह है जिसमें लोकतंत्र को हमारी राजव्यवस्था से अलग किया जा रहा है। कई तरह से देखा जाए तो यह अधिक सूक्ष्म और खतरनाक है।आपातकाल
कोरोना महामारी की दूसरी लहर की वजह से पूरे देश में जो संकट पैदा हुआ है, उसमें कुछ पारंपरिक मीडिया संस्थानों और सोशल मीडिया पर भी ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हवा बदलने लगी है। हालांकि, नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब से ही मीडिया का एक बड़ा वर्ग हमेशा उनके साथ खड़ा नजर आता था। जैसे-जैसे 2014 का लोकसभा चुनाव नजदीक आता गया, नरेंद्र मोदी के पक्ष में खबरें प्रकाशित और प्रसारित करने वाले मीडिया संस्थानों की संख्या बढ़ती गई। भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने केंद्र में सात साल का कार्यकाल पूरा किया है। इस मौके पर भले ही औपचारिक तौर पर सरकार और सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की ओर से बड़े आयोजन नहीं किए गए हों लेकिन हर तरह से यह बताने की कोशिश की जा रही है कि मोदी सरकार ने सात साल में वह सब कर दिखाया है जो पहले की सरकारों ने 70 साल में नहीं किया था। जबकि सच्चाई यह है कि इस वक्त देश एक बहुत बड़े संकट से गुजर रहा है।2020 में कोविड-19 की वजह से शुरू हुई परेशानियां खत्म भी नहीं हुई थीं कि इस साल
पश्चिम बंगाल में चल रहे विधानसभा चुनावों के परिणाम का असर सिर्फ इस प्रदेश की राजनीति पर नहीं पड़ने वाला है बल्कि इस पर भारत में लोकतंत्र का भविष्य निर्भर करता है। अगर बंगाल में पहली बार भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई तो इससे यह तय हो जाएगा कि नरेंद्र मोदी का विपक्ष मुक्त भारत बनाने का अभियान रूकने वाला नहीं है। साथ ही यह भी साबित हो जाएगा ‘चुनाव आधारित निरंकुशता’ कायम करने का उनका काम भी थमने वाला नहीं है।अगर भाजपा को बहुमत नहीं मिलता है और इसके बावजूद भी वह सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है तो
मार्च, 2020 के तीसरे हफ्ते से लेकर जून के अंत तक में भारत ने लोगों का सबसे बड़ा पलायन देखा। इसे सिर्फ संख्या के दायरे में बांधकर नहीं देखा जा सकता। क्योंकि आंकड़ों के मूल में करोड़ों लोग हैं। इनमें बहुत सारे छोटे बच्चे, बुजुर्ग महिलाओं और पुरुषों के अलावा युवा लोग भी हैं। लोगों की याददाश्त में ‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र’ ने कभी ऐसी अफरा-तफरी, परेशानी और मायूसी को नहीं देखा था। यह मुश्किल ऐसी थी जिसे टाला जा सकता था। अगर हमारे देश के शासक गरीबों के लिए थोड़े कम अधिनायकवादी और कम उदासीन होते और साथ