लक्ष्य से काफी पीछे रह गए हम

पिछले साल दो बजट पेश हुए थे। एक अंतरिम बजट फरवरी में पेश किया गया था, उसके बाद देश में लोकसभा चुनाव हुए और जुलाई में एक बार फिर मोदी सरकार ने अपना बजट पेश किया। दोनों बजट के बीच छह महीने का अंतर था, पर इन छह महीनों में ही आंकड़ों में बदलाव दिख गया। सरकार की आय और खर्च के बीच एक लाख, 80 हजार करोड़ रुपये का अंतर आ गया। इतने कम समय में बजट में आए इस बड़े अंतर को सरकार ने ही अपने आंकड़ों से जाहिर कर दिया। अंतरिम बजट में आय और खर्च के जो आंकड़े दिए गए थे, वे सही थे या पूर्ण बजट वाले आंकड़े सही थे? यह अपने आप में सोचने वाली बात थी कि आंकड़ों में इतनी बड़ी गड़बड़ी कैसे हुई? पूरा बजट पेश होने के एक महीने बाद ही हमने यह भी देखा कि केंद्र सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक से जो अतिरिक्त धन प्राप्त किया, वह भी लगभग इतना ही था। केंद्र सरकार के पास खर्च के लिए पैसे कम पड़ रहे थे, तो रिजर्व बैंक ने 1.76 लाख करोड़ रुपये दिए थे।

पिछले बजट से खुद सरकार को बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन आज का सच यही है कि हम आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। दुनिया की बड़ी आर्थिक संस्थाएं भी इस ओर संकेत कर चुकी हैं। देश के बड़े आर्थिक विशेषज्ञ भी बोल रहे हैं कि हम आर्थिक मंदी से गुजर रहे हैं। पिछले साल के अपने बजट के जरिए केंद्र सरकार ने जो सोचा था कि अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा, वह नहीं आया। सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी के जिस रफ्तार से बढ़ने की आशा की गई थी, वह पूरी नहीं हुई। जहां हम एक ओर, जीडीपी के लक्ष्य को हासिल नहीं कर सके, वहीं दूसरी ओर, अब मुद्रास्फीति भी बढ़ने लगी है। पिछले बजट से भारतीय अर्थव्यवस्था को ज्यादा मदद नहीं मिली है, खुद सरकारी आंकड़े इसके गवाह हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जीडीपी विकास दर 4.5 प्रतिशत के आसपास पहुंच गई है, लेकिन इस आंकड़े की विश्वसनीयता पर सवाल हैं, अर्थव्यवस्था के अच्छे जानकार भी इस पर उंगली उठा रहे हैं। पिछली सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने एक अध्ययन-पत्र तैयार किया था, जिसमें उन्होंने बताया कि सरकार जीडीपी विकास दर को ढाई फीसदी बढ़ाकर बता रही है। इसका अर्थ यह हुआ कि हमारी अर्थव्यवस्था दो प्रतिशत की विकास दर से बढ़ रही है। एक अन्य अर्थशास्त्री अरुण कुमार का कहना है कि जीडीपी विकास दर इतनी भी नहीं है। असंगठित क्षेत्र, जिसमें कृषि भी शामिल है, की विकास दर आधा फीसदी के करीब है। कुल मिलाकर, अनेक आर्थिक विशेषज्ञ बता रहे हैं कि विकास दर के आंकड़े बढ़ाकर दिखाए गए हैं।नोटबंदी और फिर जीएसटी जैसे बड़े कदमों का अर्थव्यवस्था पर जो नकारात्मक असर हुआ है, उसे पिछला बजट पलट नहीं पाया है। इन बड़े कदमों का असर आज भी अर्थव्यवस्था पर दिख रहा है। आज भारत में उत्पादन और मांग में जो फर्क आया है, वह चकित करता है। भारत के इतिहास में पहली बार कंपनियों ने बिजली उत्पादन को कम कर दिया है, डीजल का उपभोग भी कम हुआ है। ऐसा कब होता है? विकास को गति देने के लिए बिजली और डीजल की खपत तो बढ़नी चाहिए थी, लेकिन घट कैसे रही है? पिछले दिनों कॉरपोरेट आयकर में जो छूट दी गई है, उससे भी घाटा बढ़ेगा। आज आपके पास पैसा नहीं है। सरकार के पास भी पैसा नहीं है। संपत्ति बेचने की तैयारी दिखती है। हालांकि विनिवेश की बात पिछले बजट में भी थी, पर बड़ी कामयाबी हाथ नहीं लगी। अब एअर इंडिया व भारत पेट्रोलियम बिकने वाला है।

आज सरकार के पास मनरेगा के लिए पैसा नहीं है, उज्जवला व ग्राम सड़क योजना पर कैसे खर्च होगा? जन धन योजना और स्वच्छ भारत के लिए कैसे खर्च बढ़ेगा? आगामी समय की बात करें, तो सरकार को वित्तीय घाटा बढ़ाना ही पड़ेगा। यही एक रास्ता है। सरकार शायद ऐसा ही करेगी, लेकिन इसका बोझ सरकारी उपक्रमों पर आएगा। जो सरकारी संस्थाएं व उपक्रम सरकार की योजनाओं से जुड़े हैं, उन पर दबाव बढ़ेगा। पिछले बजट में निवेश बढ़ने की उम्मीद की गई थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि कर्ज के कारण बैंक मुश्किल में हैं। ऋण नहीं दे रहे हैं। निजी क्षेत्र में निवेश की कई योजनाएं ठंडे बस्ते में चली गईं। गैर-बैंकिंग कंपनियां डूब रही हैं।

खरीद-बिक्री के मोर्चे पर देखें, तो मांग नहीं बढ़ रही है। बिस्कुट से लेकर टूथपेस्ट खरीदने के लिए भी पैसे की कमी हो गई है। लोगों के पास वाहन खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। पिछले बजट के बाद से लोग यही सोच रहे हैं कि अभी इंतजार कर लेते हैं, बाद में खरीदेंगे, पता नहीं क्या होगा? जाहिर है, कुल मिलाकर खरीद-बिक्री घटेगी, तो जीडीपी का विस्तार कैसे होगा? सरकार को भान होना चाहिए कि युवाओं में नाराजगी उभरने लगी है। 135 करोड़ लोगों के देश में करीब 65 करोड़ युवा हैं, उनका भविष्य कैसा है? क्या कभी इतनी बेरोजगारी थी?

पिछली बार सरकार ने कहा था कि किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। प्रधानमंत्री किसान योजना की बात करें, तो लक्ष्य से लगभग आधे 7.5 करोड़ किसानों को ही लाभ मिल रहा है। अब फिर बजट पेश होगा, दावे भी होंगे, प्रचार भी किया जाएगा, खुद को सफल बताने की कोशिशें भी होंगी। हर घर नल जल इत्यादि कुछ योजनाएं हैं, जिनके बारे में बताया जाएगा।

वास्तव में आज बजट के जरिए सरकार को अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने पर भी काम करना चाहिए। सरकार को अपना वित्तीय घाटा बढ़ाने के लिए मन बना लेना चाहिए। ग्रामीण युवाओं के लिए कुछ विशेष करने की जरूरत है। रोजगार दीजिए। कुछ कॉरपोरेट को खुश रखने की बजाय युवाओं को खुश रखने की कोशिश कीजिए। सरकार को ध्यान रखना चाहिए, पिछले आम बजट के बाद से सत्तारूढ़ पार्टी की राजनीति भी विभिन्न राज्यों में कमजोर पड़ी है। महाराष्ट्र जैसे अहम व्यावसायिक राज्य में सत्ता छिनी है। पिछली मंदी की तुलना में आज स्थिति ज्यादा खराब है, क्योंकि तब युवाओं की संख्या इतनी नहीं थी। आज युवाओं के देश में बेरोजगारी बड़ी समस्या बन रही है। जरूरी है कि सरकार भी इस बड़ी कमी को महसूस करे।

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How legal harassment by corporates is shackling reportage and undermining democracy in India
 
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  • Authorship: Ramnika Gupta
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