चार टीमों ने मिलकर गढ़ी नरेंद्र मोदी की बड़ी छवि

2014 के लोकसभा चुनावों के पहले मुंबई के उद्यमी राजेश जैन ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के लिए मतदाताओं का एक डाटाबेस तैयार किया। इसके जरिए लक्षित वर्ग को फेसबुक और व्हाट्सएप के जरिए संदेश भेजा गया। मतदाता सूची, मतदान केंद्रों और निर्वाचन आयोग जैसे स्रोतों की मदद से यह डाटाबेस तैयार हुआ था। इसके जरिए राजेश जैन और उनकी टीम ने भारतीय जनता पार्टी को मजबूत और कमजोर सीटों और यहां तक की मतदान केंद्रों की पहचान करने में मदद की।

इस डाटाबेस की खास बात यह थी इसमें जाति, भौगोलिक आधार और यहां तक की धर्म के आधार पर मतदाताओं को श्रेणीबद्ध किया गया था। इससे भाजपा की सोशल मीडिया टीम को लक्षित वर्ग तक पहुंचने में मदद मिली। इन सबमें शामिल रहे एक व्यक्ति ने बताया, ‘कभी इस बात को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं किया गया कि यह डाटाबेस मुस्लिमों और दूसरे अल्पसंख्यकों की पहचान करने के लिए तैयार किया गया था। इससे पार्टी की सोशल मीडिया टीम को यह पता चला कि किन्हें लक्षित नहीं करना है।’

इसके बाद जैन की टीम ने इन आंकड़ों को मोबाइल नंबर से जोड़कर इन्हें भाजपा के मिस्ड कॉल अभियान से जोड़ दिया। जिन लोगों ने मिस्ड कॉल देकर नरेंद्र मोदी का समर्थन किया उन्हें एक संदेश भेजकर उनसे मतदाता पहचान पत्र का विवरण मांगा गया। इससे यह सुनिश्चित किया गया कि भाजपा इस वर्ग को चुनाव के दिन लक्षित करे और वोट देने जाएं। चुनावों के बाद राजेश जैन ने रेडियस कोड के ब्रांड नाम से इस डाटाबेस को निजी कंपनियों को बेचने की नाकाम कोशिश की।  

एक तरफ जहां राजेश जैन अपनी रणनीति बना रहे थे, वहीं दूसरी तरफ भाजपा आईटी प्रकोष्ठ के लोगों ने फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ बातचीत शुरू की। भाजपा समर्थकों की मानें तो भाजपा ने अपने विरोधियों के मुकाबले सोशल मीडिया का बहुत अच्छे से इस्तेमाल किया। फेसबुक के कर्मचारियों ने भाजपा आईटी प्रकोष्ठ के लोगों को प्रशिक्षण भी दिया।

उस दौर में भाजपा को मदद करने का काम क्रिएटिवलैंड एशिया सज्जन राज कुरूप और प्रहलाद कक्कड़ भी कर रहे थे। अनुपम खेर कुछ विज्ञापन अभियानों के चेहरा बन गए। नरेंद्र मोदी का दाहिना हाथ माने जाने वाले हीरेन जोशी के नेतृत्व वाली टीम ने मोदी की बहुत बड़ी छवि गढ़ने का काम किया। प्रधानमंत्री कार्यालय में ओएसडी के पद पर काम कर रहे जोशी का दखल कई क्षेत्रों में है। उनकी मदद नीरव शाह और यश राजीव गांधी कर रहे थे। फेसबुक के वरिष्ठ अधिकारियों से जोशी के गहरे संबंध रहे हैं। 2013 में उनके साझीदार अखिलेश मिश्रा थे। वे बाद में भारत सरकार की वेबसाइट माई गोव के निदेशक बने। अभी इसके प्रमुख अरविंद गुप्ता हैं। जो पहले भाजपा आईटी प्रकोष्ठ के प्रमुख थे। अखिलेश मिश्र ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

मोदी का चुनाव अभियान बराक ओबामा के 2012 के चुनाव अभियान की तर्ज पर खड़ा किया गया था। ओबामा को ‘दुनिया का पहला फेसबुक राष्ट्रपति’ कहा जाता है। ऐसा लगता है कि मोदी के अभियान में लगे लोग साशा आइसेनबर्ग की किताब दि विक्ट्री लैबः दि सिक्रेट साइंस ऑफ विनिंग कैंपेंस। 2014 के लोकसभा चुनावों में हर स्रोत से डाटा जमा किया गया और मोदी की महानता वाली छवि गढ़ने में इसका इस्तेमाल हुआ।

इसके लिए एक साथ चार टीम काम कर रही थी। दूसरी टीम का नेतृत्व राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर कर रहे थे। प्रशांत किशोर की इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी मोदी के लिए रन फॉर यूनिटि, चाय पे चर्चा और मंथन जैसे अभियान चला रही थी। वहीं उनकी दूसरी संस्था सिटिजन फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस प्रबंधन के छात्रों को जोड़कर मोदी की सभाओं के लिए समर्थन जुटाने का काम कर रहे थे। प्रशांत किशोर अभी बिहार की सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड के उपाध्यक्ष हैं।

तीसरी टीम का नेतृत्व हीरेन जोशी कर रहे थे। यह टीम गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय से चल रही थी। इसके जरिए मोदी की निजी छवि गढ़ने का काम हो रहा था। हमारे एक से अधिक स्रोत ने बताया कि इस टीम के सदस्य फेसबुक इंडिया के अधिकारियों के साथ मिलकर काम कर रहे थे। अभी फेसबुक में वरिष्ठ पद पर काम कर रहे शिवनाथ ठुकराल इस टीम के साथ काम कर रहे थे। हमने हीरेन जोशी से बात करने के लिए उन्हें कई बार फोन किया और ईमेल किया लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया।

चौथी टीम का नेतृत्व अरविंद गुप्ता कर रहे थे। वे दिल्ली से भाजपा का अभियान चला रहे थे। जब उनसे हमने बातचीत की कोशिश की तो उन्होंने यह कहते हुए बातचीत से इनकार कर दिया कि वे अब भाजपा के साथ नहीं बल्कि भारत सरकार के साथ काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम भाजपा आईटी प्रकोष्ठ के मौजूदा प्रमुख अमित मालवीय से बात करें। मालवीय ने फेसबुक और भाजपा के रिश्तों पर कुछ नहीं बोला। 

चारों टीमें अलग-अलग काम कर रही थीं। उस वक्त भाजपा आईटी प्रकोष्ठ के सह-संयोजक रहे विनित गोयनका कहते हैं, ‘यह एक रिले दौड़ की तरह था। जरूरत के हिसाब से टीमों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान होता था। इसी तरह से कोई भी समझदार संगठन काम करता है।’

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