ए के रॉय : जनबल से धनबल और बाहुबल को मात देना वाला योद्धा

अरुण कुमार रॉय नहीं रहे। एके रॉय के नाम से वे खासे लोकप्रिय थे। मजदूरों के नेता के तौर पर उनकी पहचान रही है। वामपंथी धारा के जो ट्रेड यूनियन नेता हुए हैं, उनमें एके रॉय की हस्ती काफी बड़ी थी। पूरी जिंदगी मजदूरों के हकों और हितों के लड़ने वाले एके रॉय ने बीते रविवार को झारखंड के धनबाद में आखिरी सांसें लीं।

1935 में पैदा हुए एके रॉय का जीवन 84 साल का रहा। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की शिक्षा हासिल करने के बाद उच्च शिक्षा जर्मनी से हासिल की। पढ़ाई करके लौटने के बाद उन्होंने सिंदरी में बतौर इंजीनियर काम करना शुरू किया। इस दौरान उन्हें मजदूरों की व्यथा ने काफी व्यथित किया। उन्हें लगा कि मजदूरों के लिए कुछ करना चाहिए। गरीब मजदूरों के हकों और हितों के लिए संघर्ष करने की इच्छा की वजह से उन्होंने बतौर इंजीनियर काम करना छोड़ दिया। अब वे पूरी तरह से मजदूरों के लिए काम करने लगे।

इस 84 साल में से उनके सार्वजनिक जीवन के जो साल रहे, वे सभी आम मजदूरों को समर्पित थे। सार्वजनिक जीवन में संघर्ष करते हुए वे तीन बार सांसद भी बने और तीन बार विधायक भी। विधायकी और सांसदी का चुनाव बहुत खर्चीला होता है। इन चुनावों में धनबल और बाहुबल का प्रभाव किसी से छिपा हुआ नहीं है। लेकिन एके रॉय के पास जनबल था। अपने जनबल से उन्होंने सांसदी और विधायकी के चुनावों में धनबल और बाहुबल को पछाड़ने में लगातार कामयाबी हासिल की। लोगों के लिए जिस निष्ठा से उन्होंने काम किया, उसी का परिणाम था कि वे बार-बार चुनाव जीते। लोकसभा में उन्होंने तीन बार धनबाद का प्रतिनिधित्व किया।

सांसद के तौर पर उन्हें जो वेतन मिलता था, उसे वे अपनी पार्टी कार्यकताओं और कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों के बीच बांट देते थे। जब वे सांसद नहीं रहे तो उन्हें सांसदों का पेंशन मिलने लगा। लेकिन यह भी उन्होंने राष्ट्रपति कोष में दान कर दिया। उनका तर्क यह था कि एक नेता कभी सेवानिवृत्त नहीं होता, इसलिए वे पेंशन नहीं लेंगे। वे बगैर बिजली वाले पार्टी कार्यालय में रहते थे। उनका कहना था कि जब तक हर मजदूर के घर बिजली नहीं पहुंच जाती तब तक उन्हें बिजली वाले घर में रहने का कोई हक नहीं है।

धनबाद की पहचान पूरे देश में कोयला के खदानों के लिए है। कोयला के खदानों के साथ ही धनबाद के कोयला माफिया की भी बात आती है। कुछ हिंदी फिल्मों में भी दिखाया गया है कि धनबाद के कोयला माफिया कितने प्रभावशाली रहे हैं। काला पत्थर और गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी फिल्में इसका उदाहरण हैं। लेकिन एके रॉय ने अपनी जीवन काल में बड़ी ही बहादुरी से इन कोयला माफिया से लोहा लिया। उन्होंने कोयला माफिया को भी मजबूर किया कि वे मजदूरों की हकमारी न करें। इस संघर्ष के जरिए उन्होंने मजदूरों को उनका हक दिलाने में कामयाबी हासिल की।

2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य का गठन हुआ। बहुत सारे लोगों अलग झारखंड राज्य के सूत्रधार के तौर पर शिबू सोरेन को देखते हैं। सोरेन झारखंड में मुख्यमंत्री भी बने और केंद्र सरकार में कोयला मंत्री भी। लेकिन जो लोग अलग झारखंड राज्य के गठन के लिए संघर्ष में शामिल रहे हैं, उन्हें पता है कि एके रॉय के संघर्ष ने अलग झारखंड राज्य की राह बनाई थी। जिस झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता के तौर पर सोरेन जाने गए, उसका गठन एके रॉय ने ही किया था। सोरेन उनके सहयोगी थे। लेकिन न तो उन्हें झारखंड का मुख्यमंत्री बनना था, न उन्हें केंद्र सरकार में मंत्री बनना था और न ही उन्हीं लुटियन दिल्ली में बड़े बंगले का लोभ था, इसलिए उन्होंने खुद को न सिर्फ झारखंड मुक्ति मोर्चो से अलग किया बल्कि अलग झारखंड राज्य गठन का श्रेय लेने की दौड़ से भी खुद को दूर ही रखा।

बात चाहे देश की संसद की हो या फिर विधानसभाओं की। जब भी इन सदनों में सदस्यों के वेतन और भत्ते में बढ़ोतरी की बात आती है तो सत्ता पक्ष और विपक्ष में गजब की आम सहमति दिखती है। हर पक्ष के लोग इन प्रस्तावों का समर्थन करते नजर आते हैं। जब—जब ऐसी स्थिति भविष्य में कभी संसद या विधानसभाओं में दिखेगी, तब—तब एके रॉय याद आएंगे। जब वे लोकसभा सदस्य थे तो एक बार सांसदों के वेतन बढ़ाने का ऐसा ही एक प्रस्ताव आया। 543 सदस्यों की लोकसभा में एके रॉय अकेले सांसद थे जिन्होंने इसका विरोध किया। वे अकेले खड़े हुए।

सच्चाई और ईमानदारी के साथ उनका अकेले तनकर खड़ा होने का जज्बा उन्हें एक अलग श्रेणी में ले जाता है। जब राजनीति में बात-बात पर समझौता करना एक चलन बन गया हो,उस दौर में एके रॉय का सच्चाई और ईमानदारी के साथ पूरी निष्ठा से खड़ा होना नमन करने के साथ-साथ प्रेरणा लेने के लायक भी है।

एके रॉय ने सबसे गरीब लोगों के बीच काम किया। उन्होंने समाज के सबसे लाचार लोगों को आवाज दी। धनबाद और झरिया में जलती हुई कोयला खदानों में काम करने वाले आदिवासियों को उन्होंने एकजुट किया। उन्होंने इन कमजोर, लाचार और गरीब लोगों को एकजुट करके उन्हें जनबल की शक्ति का अहसास कराया। इस जनबल के आगे कोयला माफिया की बंदूकें भी बेअसर हो गई। एके रॉय ने कोयला माफिया की बंदूकों को अपनी निष्ठा और कार्यों से चुप कराया और गरीबों को उनका हक दिलाया।
मेरे लिए कॉमरेड एके रॉय को जानना सौभाग्य की बात है। ऐसे लोग बहुत कम होते हैं। लेकिन एके रॉय के जीवन और उनके कार्यों के बारे में देश के नौजवानों को बताया जाना चाहिए। ताकि कुछ लोग उनसे प्रेरणा लेकर गरीबों, मजदूरों और वंचितों के लिए काम करने की दिशा में आगे बढ़ सकें।

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