विश्लेषण: विपक्षी दलों के वोटों में बिखराव से उत्तर प्रदेश में जीती भाजपा

उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में कुल 403 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों को कुल 273 सीटें हासिल हुई। इनमें से 255 सीटें अकेले भाजपा को मिलीं। समाजवादी पार्टी को सिर्फ 111 सीटें मिलीं। अगर सपा के सहयोगियों की सीटों की संख्या भी इसमें जोड़ दें तो कुल संख्या 125 पर पहुंचती है। हालांकि, सपा गठबंधन के सीटों की संख्या भाजपा गठबंधन के सीटों की संख्या से काफी कम है लेकिन इस चुनाव परिणाम का विस्तृत विश्लेषण करने पर पता चलता है कि अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा गठबंधन की हार और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा गठबंधन की जीत की एक बड़ी वजह यह है कि भाजपा विरोधी वोटों में काफी बिखराव हुआ।

इस विश्लेषण में जाने से पहले समझते हैं कि किस पार्टी को उत्तर प्रदेश में कितने प्रतिशत वोट मिले। अकेले भाजपा को उत्तर प्रदेश में 41.3 प्रतिशत वोट मिले। जबकि सपा को 32.1 प्रतिशत वोट मिले। सपा की सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल को 2.85 प्रतिशत वोट मिले। सपा की दूसरी सहयोगी पार्टियों के मत प्रतिशत को जोड़ दिया जाए तो इस गठबंधन को मिले मतों की हिस्सेदारी 36.3 प्रतिशत हो जाती है। इसी तरह से भाजपा के सहयोगियों को मिले वोटों को जोड़ दिया जाए तो उसकी हिस्सेदारी भी 43.8 प्रतिशत है।

इस तरह से देखें तो दोनों गठबंधन के मतों के बीच तकरीबन 7 प्रतिशत का अंतर है। लेकिन सीटों की संख्या में दोगुने का अंतर है। उत्तर प्रदेश में 2022 में हुए विधानसभा चुनावों में मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी को 12.9 प्रतिशत वोट मिले हैं। उत्तर प्रदेश में कभी अकेले पूर्ण बहुमत पाने वाली बसपा को इस बार सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ा। वहीं कांग्रेस पार्टी को दो सीटें मिलीं और उसे 2.33 प्रतिशत वोट मिले हैं। 2019 का लोकसभा चुनाव सपा और बसपा मिलकर लड़े थे। अगर सपा को मिले वोटों में बसपा के वोट भी जोड़ दिए जाएं तो इन दोनों के वोटों की संयुक्त हिस्सेदारी तकरीबन 45 प्रतिशत हो जाएगी। यह भाजपा और उसके सहयोगियों को मिले वोट से काफी अधिक है और ऐसे में सपा—बसपा गठबंधन को बड़ी जीत मिली होती और भाजपा गठबंधन की हार हो गई होती।

दरअसल, 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों का यह एक सामान्य विश्लेषण है कि भाजपा विरोधी मतों का बिखराव ही नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाले भाजपा गठबंधन की जीत की सबसे बड़ी वजह बन गया। इस बिखराव को राज्य के स्तर पर बसपा के मत प्रतिशत को सपा के मत प्रतिशत के साथ जोड़कर देखा जा सकता है। लेकिन अगर इससे नीचे जाकर सीटों के हिसाब से देखा जाए तो बसपा के साथ—साथ कुछ सीटों पर कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) ने भी इतनी संख्या में वोट काटे कि भाजपा या उसकी सहयोगी दलों के उम्मीदवार चुनाव जीत गए। ऐसी बहुत सारी सीटें हैं, जहां भाजपा के विजयी उम्मीदवार और दूसरे नंबर पर रहे सपा गठबंधन के उम्मीदवार के बीच मतों का जो अंतर है, उससे अधिक वोट बसपा के उम्मीदवार या कांग्रेस या एआईएमआईएम के उम्मीदवार को मिले हैं। इससे पता चलता है कि सरकार विरोधी मतों के बिखराव ने भाजपा को एक बार फिर से भारत के सबसे बड़े प्रदेश में अपनी सरकार बनाने में मदद की।

कई सीटें ऐसी रही हैं, जहां जीत का फासला काफी कम रहा है। 11 सीटें ऐसी हैं, जहां भाजपा 500 से कम वोटों से जीती है। कुल मिलाकर 53 सीटें ऐसी हैं जहां 5000 से कम वोटों के अंतर से भाजपा और उसकी सहयोगी दलों ने जीत हासिल की है। ऐसी सात सीटें हैं, जहां भाजपा के विजयी उम्मीदवार और सपा गठबंधन के हारे हुए उम्मीदवार के बीच के मतों के अंतर से अधिक वोट एआईएमआईएम को मिले हैं। जिन 95 सीटों पर एआईएमआईएम ने अपने उम्मीदवार उतारे, उनमें से 51 सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई है।

कुछ सीटों के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे भाजपा विरोधी मतों का बिखराव, भाजपा की बड़ी जीत की वजह बना। इससे यह भी पता चलता है कि अगर इन मतों का बिखराव इस तरह से नहीं होता तो भारत के सबसे बड़े राज्य के विधानसभा चुनावों के परिणाम बिल्कुल अलग हो सकते थे।

अलीगंज विधानसभा

अलीगंज विधानसभा क्षेत्र में सपा प्रत्याशी रामेश्वर सिंह यादव को 99,063 वोट मिले। इनका मत प्रतिशत 43.76 रहा। वहीं भाजपा प्रत्याशी सत्यपाल सिंह ने 1,02,873 (45.44℅) वोटों के साथ इस सीट पर जीत दर्ज की। जबकि बसपा के प्रत्याशी साऊद अली खान उर्फ जुनैद मियां को 17751 वोट मिले, जिनका प्रतिशत 7.84 रहा। पिछले चुनाव के मुकाबले अब की बार इस विधानसभा सीट से जीत का अंतर कम यानी 3810 रहा है।  जबकि इस दफा भाजपा और सपा प्रत्याशी के वोट प्रतिशत में इजाफा भी हुआ है। इस सीट पर बीएसपी ने मुस्लिम प्रत्याशी जुनैद मियां को उतारा, जिससे वोट कटा और सीधा लाभ भाजपा को मिला। ऐसे में सपा की हार हुई। अगर बसपा के उम्मीदवार को मिले वोट सपा के खाते में गए होते तो इस सीट पर सपा के उम्मीदवार की बड़ी जीत हुई होती। 

औराई विधानसभा

इस विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी दीनानाथ भास्कर ने 93,691 (41.69℅) वोट के साथ जीत प्राप्त की। वहीं सपा प्रत्याशी अंजनी 92,044 (40.95℅) वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। बसपा उम्मीदवार कमला शंकर 28,413 (12.64%) वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे। इस सीट पर जीत का अंतर 1,647 रहा। इस सीट पर बसपा ने 12% से ज्यादा वोट काटे। अगर इसमें से 1% वोट भी सपा के पाले में चला जाता तो इस सीट पर बाजी पलट जाती और सपा जीत दर्ज करती।

बहराइच विधानसभा

इस सीट पर जीत—हार का अंतर 4078 वोटों का रहा। भाजपा प्रत्याशी अनुपमा जायसवाल ने 1,07,628 (46.45) वोटों के साथ जीत दर्ज की। जबकि सपा प्रत्याशी यासिर शाह को 1,03,550 (44.69%) वोट मिले। वहीं तीसरे स्थान पर रहे बसपा उम्मीदवार नईम को 10,299 (4.44%) वोट मिले। अगर इस सीट पर वोटों का बंटवारा नहीं हुआ होता तो 4,078 वोटों का जो अंतर है, उसका फायदा सपा को मिलता और वह इस सीट पर जीत दर्ज करती।

बड़ौत विधानसभा

इस सीट से भाजपा प्रत्याशी कृष्ण पाल सिंह मलिक ने 90,931 (46.34℅) वोट के साथ जीत हासिल की। जबकि दूसरे पायदान पर सपा की सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल के प्रत्याशी जय वीर सिंह तोमर को 90,616 (46.18%) वोट मिले। वहीं तीसरे स्थान पर रहे बसपा के उम्मीदवार अंकित शर्मा ने 11,244 (5.73%) वोट हासिल किए। इस सीट पर 315 वोटों के अन्तर से भाजपा ने जीत प्राप्त की। जाहिर है कि अगर इस सीट पर वोटों का बंटवारा नहीं हुआ होता तो ये सीट सपा गठबंधन के खाते में गई होती।

भोनगांव विधानसभा

इस सीट पर सपा प्रत्याशी आलोक शाक्य को 92,441 (42.97%) वोट मिले। वहीं भाजपा प्रत्याशी राम नरेश अग्निहोत्री को 97,208 (45.18%) वोट मिले और उन्होंने जीत दर्ज की। सपा और भाजपा के बीच वोटों का अंतर 4,767 रहा। वहीं तीसरे नंबर पर बसपा उम्मीदवार अशोक कुमार 14,150 (6.58%) वोट के साथ रहे। ऐसे में बीएसपी ने जो वोट काटे, उनका अगर एक तिहाई हिस्सा भी सपा को मिल जाता तो सपा गठबंधन के उम्मीदवार को जीत हासिल हो गई होती।

बिजनौर विधानसभा

इस विधानसभा सीट से आरएलडी के प्रत्याशी डॉ. नीरज चौधरी ने 95720 (37.96℅) वोट प्राप्त किए लेकिन वे हार गए। वहीं भाजपा प्रत्याशी सूची मौसम चौधरी ने 97,165 (38.54%) के साथ जीत दर्ज की। यहां तीसरे नंबर पर बसपा प्रत्याशी रुचि वीरा 52035 (20.64℅) रहीं। इस सीट पर भाजपा की जीत का अंतर 1,445 वोटों का रहा। इस सीट पर बसपा को जितने वोट मिले, उसके आधे प्रतिशत भी सपा की सहयोगी आरएलडी के उम्मीदवार को चले गए होते तो इस सीट पर भाजपा की हार होती और सपा गठबंधन की सरकार को जीत हासिल हुई होती। इस सीट पर एआईएमआईएम के प्रत्याशी मुनीर अहमद को 2,290 (0.91%) वोट मिले। यहां सिर्फ एआईएमआईएम के वोट भी सपा गठबंधन को मिले होते तो भी इस सीट पर भाजपा की हार हुई होती।

बिलासपुर विधानसभा

इस सीट से भाजपा प्रत्याशी बलदेव सिंह ने 1,01,998 (43.17%) वोटों के साथ जीत दर्ज की। जबकि दूसरे नंबर पर सपा के उम्मीदवार अमरजीत सिंह 1,01,691 (43.04%) रहे। इस सीट पर भाजपा और सपा के बीच 307 वोटों का अंतर रहा। वहीं तीसरे पायदान पर बसपा के प्रत्याशी रामअवतार कश्यप को 18,870 (7.99%) वोट मिले। इस सीट पर तो बसपा के अलावा अन्य कुछ पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों को भी 307 वोटों के जीत के अन्तर से ज्यादा वोट मिला। इस तरह जो वोट यहां बंट गए, उससे सपा यहां मामूली वोटों से हार गई और भाजपा उम्मीदवार को जीत हासिल हुई।

छिबरामऊ विधानसभा

इस सीट से भाजपा की अर्चना पांडे ने 1,24,773 (44.31%) वोट के साथ जीत हासिल की। वहीं सपा के अरविंद यादव 1,23,662 (43.91%) वोटों के दूसरे नंबर पर रहे। जबकि बसपा प्रत्याशी वहीदा बानो उर्फ जूही सुल्तान 22,000 (7.81%) वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहीं। इस सीट पर भाजपा और सपा के बीच जीत का अंतर 1,111 वोट का रहा। ऐसे में यदि बसपा और अन्य दलों में वोटों का बटवारा नहीं हुआ होता तो इस सीट पर भी सपा को जीत हासिल हुई होती।

धामपुर विधानसभा

इस विधानसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार अशोक कुमार राणा ने 81,791 (39.89%) वोटों के साथ जीत हासिल की। वहीं दूसरे नंबर पर रहे सपा के नईमुल हसन को 81,588 (39.79%) वोट मिले। जबकि यहां तीसरे नंबर पर रहे बसपा प्रत्याशी ठाकुर मूलचंद को 38,993 (19.01%) वोट मिले। इस सीट पर जीत—हार का अंतर सिर्फ 203 वोटों का रहा। इससे अधिक वोट तो कई छोटे दलों के उम्मीदवारों और निर्दलीय उम्मीदवारों को मिले। यहां अगर वोटों का बंटवारा नहीं हुआ होता तो यह सीट भी सपा गठबंधन के खाते में गई होती।

इटावा विधानसभा

इस विधानसभा सीट से विजयी भाजपा उम्मीदवार सरिता भदौरिया को 98,150 (39.97%) वोट मिले। जबकि दूसरे नंबर पर रहे सपा उम्मीदवार सर्वेश शाक्य को 94,166 (38.35%) वोट मिले। तीसरे नंबर पर रहे बसपा प्रत्याशी कुलदीप गुप्ता को 46,525 (18.95%) वोट हासिल हुए। इस सीट पर जीत का अंतर 3,984 वोटों का रहा। जाहिर है कि जितने वोट बसपा ने यहां काटे, अगर उसका 10 प्रतिशत वोट भी सपा को मिल गया होता तो इस सीट पर भाजपा की हार हुई होती और सपा के उम्मीदवार को जीत हासिल हुई होती।

ये सीटें तो सिर्फ बानगी हैं। ऐसी और भी बहुत सारी सीटें हैं, जहां इसी तरह से भाजपा विरोधी मतों में बिखराव के कारण भाजपा उम्मीदवार की जीत हुई और सपा गठबंधन के उम्मीदवार की हार हुई। फरीदपुर विधानसभा सीट पर जीत का अंतर 2,921 रहा। जबकि यहां बसपा उम्मीदवार को 14,478 वोट मिले। जलालाबाद विधानसभा में भाजपा प्रत्याशी की जीत 4,572 वोटों से हुई। जबकि इस सीट पर बसपा उम्मीदवार को 16,057 वोट मिले। यही कहानी जलेसर विधानसभा सीट की भी रही। यहां भाजपा प्रत्याशी संजीव कुमार दिवाकर ने सपा उम्मीदवार रणजीत सुमन को 4,441 वोटों से हराया। जबकि यहां बसपा के आकाश सिंह को 19,364 वोट मिले। यहां भी अगर बसपा ने वोट नहीं काटे होते तो सपा ये सीट जीतने में भी कामयाब हो गई होती।

कुर्सी विधानसभा क्षेत्र का किस्सा तो और भी रोचक है। यहां भाजपा और सपा के बीच जीत का अंतर सिर्फ 217 वोटों का रहा। जबकि तीसरे स्थान पर रही बसपा के उम्मीदवार को यहां 35,561 वोट मिले। चौथे स्थान पर एआईएमआईएम प्रत्याशी कुमेल अशरफ खान 8,541 वोटों के साथ रहे। इस सीट पर बसपा और एआईएमआईएम में वोटों का बटवारा ना हुआ होता तो ये सीट भी सपा के हाथ में होती। मधुबन विधानसभा सीट पर भाजपा और सपा के बीच 4,448 वोटों का अंतर रहा और यहां भाजपा ने जीत हासिल की। जबकि यहां बसपा को 51,185 वोट मिले। जाहिर सी बात है कि यहां भी सपा वोटों में बिखराव की वजह से हारी।

इस विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी रामविलास चौहान 79,032 (35.24%) वोट से जीते। जबकि सपा के उमेश पांडेय 74,584 (33.26%) वोट के साथ हार स्वीकारनी पड़ी। भाजपा और सपा के मध्य यहाँ वोटों का अंतर 4,448 रहा।

वहीं मोहम्मदी विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी लोकेंद्र प्रताप सिंह ने सपा उम्मीदवार दाउद अहमद को 4,871 वोटों से हराया। जबकि इस सीट पर बसपा प्रत्याशी शकील अहमद सिद्दिकी को 31,144 (13.40%) वोट मिले। जाहिर है कि अगर इस सीट पर बसपा वोट नहीं काटती तो सपा यहां चुनाव जीत जाती। मुरादाबाद नगर विधानसभा सीट की कहानी इससे भी अधिक दिलचस्प है। भाजपा के रितेश गुप्ता ने यहां सपा के मो. यूसुफ अंसारी को सिर्फ 782 वोटों से हराया। जबकि इस सीट पर बसपा प्रत्याशी इरशाद हुसैन सैफी 14,013 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे। यहां बसपा ने जो वोट काटे, उससे सपा को नुकसान हुआ और भाजपा की जीत की राह बेहद आसान हो गई। जबकि नकुड़ विधानसभा सीट पर तो भाजपा प्रत्याशी मुकेश चौधरी ने सिर्फ 315 वोटों से जीत हासिल की। यहां दूसरे नंबर पर सपा के डॉ. धर्म सिंह सैनी रहे। इस सीट पर बसपा के साहिल खान को 55,112 मिले। जाहिर है कि यहां अगर वोटों का बंटवारा नहीं हुआ होता तो इस सीट पर भी सपा गठबंधन के उम्मीदवार को जीत हासिल हुई होती।

नहटौर विधानसभा सीट पर भाजपा 258 वोटों से जीती। जबकि यहां बसपा को 38,000 से अधिक वोट मिले। फूलपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा और सपा के बीच जीत—हार का फासला 2,732 वोटों का रहा। इस सीट पर बसपा को 33,036 वोट मिले। सलोन विधानसभा में भाजपा और सपा के बीच 2,111 वोटों का अंतर रहा। जबकि यहां तीसरे नंबर पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी अर्जुन पासी को 11,439 वोट और चौथे नंबर पर रहे बसपा उमीदवार स्वाति सिंह को 9,335 वोट मिले। श्रावस्ती विधानसभा सीट पर भाजपा और सपा के बीच सिर्फ 1,457 वोटों का अंतर रहा और यहां बसपा को 41,026 वोट मिले। इसी तरह सीतापुर में भाजपा ने सपा प्रत्याशी को हराकर 1,253 वोटों से जीत हासिल की। जबकि यहां बसपा को 16,988 वोट मिले। सुल्तानपुर में भाजपा ने सपा को 1,009 वोटों से हराकर जीत हासिल की। यहां बसपा उम्मीदवार को 22,521 वोट मिले। तिरवा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के कैलाश सिंह राजपूत ने सपा प्रत्याशी अनिल कुमार पाल को 4,608 वोटों से हराया। जबकि यहां बसपा उमीदवार अजय कुमार को 23,092 वोट मिले।

जिन सीटों का उल्लेख यहां तथ्यों के साथ किया गया है, इनके विश्लेषण से पता चलता है कि इन सीटों पर भाजपा की जीत की असली वजह विपक्षी वोटों में बिखराव है। यहां जिन सीटों का उल्लेख किया गया है, इनके अलावा भी कई और सीटें हैं, जहां इसी तरह से हार—जीत का फैसला हुआ है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर विपक्षी गठबंधन में एकजुटता होती और मायावती की बहुजन समाज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम भी विपक्षी गठबंधन का हिस्सा होती तो उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार हुई होती और विपक्षी गठबंधन को जीत हासिल हुई होती।

विपक्ष के लिए इसका एक सबक यह भी है कि आने वाले दिनों में जो भी विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें अगर भाजपा का मुकाबला करना है तो हर हाल में विपक्ष की एकजुटता सुनिश्चित करने के लिए काम करना होगा। क्योंकि अगर विपक्ष बिखरा रहा तो जिस तरह के चुनाव परिणाम उत्तर प्रदेश में आए हैं, उसी तरह के चुनाव परिणाम दूसरे राज्यों में दिख सकते हैं। विपक्षी वोटों में बिखराव की वजह से भी अगर भाजपा को जीत हासिल होती है तो इसे भाजपा और मीडिया के द्वारा भाजपा की बहुत बड़ी उपलब्धि के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है। ऐसे में विपक्षी दल और इनमें भी छोटे दल एक साथ आने को लेकर हतोत्साहित होते हैं। आज जरूरत इस बात की है कि जिन राज्यों में भी भाजपा को जीत हासिल हो रही है, उन राज्यों के चुनाव परिणामों का विश्लेषण बारीकी से किया जाए और यह समझकर रणनीति तैयार की जाए कि अगर विपक्ष एकजुट रहा होता तो किस तरह से भाजपा को चुनावों में मात दी जा सकती थी। अगर विपक्ष ने इस रणनीति को अपनाते हुए आने वाले चुनावों में उतरी तो इस बात की बहुत अधिक संभावना रहेगी कि वह भाजपा को पटखनी दे सके और भाजपा एवं मीडिया द्वारा बनाए गए इस भ्रम को तोड़ सके कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा अपराजेय है।

वोटों में बिखराव की वजह से इन सीटों बहुत कम वोटों से जीती भाजपा

सीट जीत-हार का अंतर

  • अलीगंज 3810
  • औराई 1647
  • बहराइच 4078
  • बड़ौत 315,
  • भोनगांव 4767,
  • बिजनौर 1445,
  • बिलासपुर 307,
  • छिबरामऊ 1111,
  • धामपुर 203, 
  • इटावा 3,984
  • फरीदपुर 2921,
  • जलालाबाद 4572,
  • जलेसर 4441,
  • कुर्सी 217,
  • मधुबन 4448,
  • मोहम्मदी 4871,
  • मुरादाबाद नगर 782,
  • नकुड़ 315,
  • नहटौर 258,
  • फूलपुर 2732,
  • सलोन 2111,
  • श्रावस्ती 1,457
  • सीतापुर1253,
  • सुल्तानपुर 1009,
  • तिरवा 4608
  • बछरावां 2812, 
  • बदलापुर 1326,
  • बहेड़ी 3365,
  • बस्ती सदर 1779,
  • भदोही 4885,
  • भिंडकी 3797,
  • बिसौली 1834,
  • चंदनपुर 234,
  • इटवा 1662,
  • दिबियापुर 473,
  • डुमरियागंज 771,
  • हंडिया 3543,
  • इसौली 269,
  • जसराना 836,
  • कल्पी 2816,
  • कटरा 357,
  • किथोरे 2180,
  • मणिकपुर 1048,
  • मड़ियाहूं 1206,
  • मेजा 3439,
  • पटियाली 4001,
  • फरेंदा 1246,
  • राम नगर 261,
  • रानी गंज 2649,
  • सरेनी 3807,
  • शाहगंज 719,
  • सुल्तानपुर 1009

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(परंजॉय गुहा ठाकुरता आर्थिक मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार हैं। सतीश भारतीय और शेखर युवा स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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How legal harassment by corporates is shackling reportage and undermining democracy in India
 
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Crony Capitalism and the Ambanis
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