कड़वी दवा कहां है

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मोदी सरकार का जो पहला बजट पेश किया है, उससे एक बार फिर यह साबित हुआ है कि हमारे देश के दोनों प्रमुख दलों-भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की आर्थिक नीतियों में कोई खास अंतर नहीं है। पी चिदंबरम के बजट से यह बजट बहुत ज्यादा अलग नहीं है। पी चिदंबरम ने जो करने की कोशिश की थी, लेकिन गठबंधन सरकार की मजबूरियों के कारण उसे अंजाम देने में सफल नहीं हो सके, वही करने की बात नए वित्त मंत्री कह रहे हैं। चिदंबरम साहब विनिवेश के जरिये राजस्व जुटाना चाहते थे, अब नए वित्त मंत्री को भी सारी उम्मीदें विनिवेश से ही हैं। उन्होंने अपने बजट भाषण में बताया है कि विनिवेश के जरिये सरकार को 58 हजार 425 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होगा। कह सकते हैं कि इस बजट में नई सोच एव नई नीति का अभाव दिखता है। अगर आप इस बजट में नया ढूंढने निकलेंगे, तो पाएंगे कि पहले जो योजनाएं कांग्रेसी नेताओं के नाम से चलाई जा रही थीं, वे अब मदन मोहन मालवीय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीन दयाल उपाध्याय के नाम से चलाई जाएंगी।

पहले जिस तरह कहा जा रहा था कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए लोगों को कड़वी दवा के लिए तैयार रहना चाहिए, वैसी कोई कड़वी दवा इस बजट में नजर नहीं आई। अर्थव्यवस्था की मौजूदा चुनौतियों के मद्देनजर जिस तरह के आर्थिक अनुशासन की दरकार थी, वह इस बजट में नहीं दिखाई देती है। इसके विपरीत वित्त मंत्री ने विभिन्न क्षेत्र के लोगों को खुश करने की कोशिश ही की है, लेकिन मुश्किल यह है कि विभिन्न वर्गों के लिए जो बजटीय आवंटन किया गया है, वह पर्याप्त नहीं है। इसलिए इससे लोग भी बहुत ज्यादा खुश नहीं होंगे।

पहली नजर में कोई कह सकता है कि सरकार ने नौकरीपेशा, मध्यवर्ग, पेंशनभोगियों, किसानों, अनुसूचित जाति एवं जनजाति और महिलाओं की बेहतरी के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इससे लोगों को बहुत फायदा होगा। अब टैक्स में छूट का ही उदाहरण ले लीजिए। हमारे देश में तीन करोड़ तीस लाख लोग आयकर चुकाते हैं। यानी कुल आबादी का मात्र करीब तीन फीसदी हिस्सा ही आय कर देता है। अब आप समझ सकते हैं कि सरकार के इस आय कर छूट प्रावधान का कितने लोगों को फायदा होगा। जाहिर है, आबादी का एक छोटा सा हिस्सा ही इससे लाभान्वित होगा।

यों तो वित्त मंत्री ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना व किसान विकास पत्र, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के कल्याण, बुजुर्गों के लिए पेंशन बीमा योजना, विकलांगों एवं दृष्टिबाधित लोगों के सशक्तिकरण एवं कल्याण, महिलाओं को मुख्यधारा में लाने, महिला एवं बाल विकास के साथ-साथ बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, दक्षता विकास जैसे कार्यक्रमों के लिए आवंटन किया है, लेकिन ये आवंटन अपर्याप्त हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आवास, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, जल संभर विकास, राष्ट्रीय पेयजल आदि से संबंधित आवंटन को भी पर्याप्त नहीं कहा जा सकता।

फिर भी पांच आईआईएम, पांच आईआईटी, नए मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा कर शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में वित्त मंत्री ने उम्मीदें जगाई हैं। लेकिन सवाल उठता है कि इन प्रस्तावों और योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए सरकार पैसा कहां से लाएगी। कोई कह सकता है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एवं पीपीपी के जरिये राजस्व जुटाया जाएगा। लेकिन बता दूं कि पीपीपी की बातें काफी पहले से चल रही हैं, लेकिन उसका कोई बहुत फायदा अब तक देखने में नहीं आया है। जहां तक एफडीआई की बात है, तो उसके बारे में तथ्य यह है कि देश में कुल जितना निवेश होता है, उसका मात्र 10 फीसदी ही एफडीआई के जरिये आता है। इस बजट में सरकार ने रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र और बीमा क्षेत्र में 49 फीसदी एफडीआई की अनुमति दी है। इसके अलावा ई-कॉमर्स के क्षेत्र में भी एफीडीआई की अनुमति दी जाएगी। लेकिन यह वक्त ही बताएगा कि पीपीपी और एफडीआई के जरिये सरकार कैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में विकास करती है और किस तरह से नए रोजगार का सृजन किया जाता है। निश्चित रूप से एफडीआई सभी समस्याओं का समाधान नहीं है।

लंबे समय से वोडाफोन पर आयकर का मामला चल रहा है। निवेशक समूह को उम्मीद थी कि सरकार आयकर कानून से संबंधित 2012 के रेट्रोस्पैक्टिव एमेंडमेंट (पूर्व प्रभावी संशोधन) को पलटने के बारे में इस बजट में कोई संकेत देगी।

लेकिन वित्त मंत्री ने कहा कि इस कानून के तहत विभिन्न अदालतों व कानूनी मंचों पर कई मामले विभिन्न स्तरों पर लंबित हैं और ये अपने तार्किक अंजाम तक पहुंचेंगे और जो भी नए मामले आएंगे, उन्हें केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) की उच्च स्तरीय समिति देखेगी। उन्होंने साफ कहा कि पिछली तिथि से कानून बनाने के सरकार के अधिकार को लेकर सवाल नहीं उठाया जा सकता, लेकिन इस अधिकार का इस्तेमाल बेहद सावधानी से किया जाना चाहिए। निश्चित रूप से इससे निवेशक समुदाय को मायूसी हुई होगी, जो पहले से ही इसकी कानून की आलोचना कर रहा था। शायद यही वजह है कि बाद में शेयर बाजार में गिरावट देखी गई। यानी वित्त मंत्री ने जिसको खुश करने की कोशिश की, वह भी खुश नहीं है।

वैसे वित्त मंत्री ने इस बजट में विभिन्न वर्गों का खयाल रखने की कोशिश की है, लेकिन जितने प्रस्ताव हैं, वे ज्यादातर उद्योग क्षेत्र के लोगों के लिए ही हैं। आम लोगों के लिए बजट में बहुत ज्यादा खुशी और राहत की बात नहीं है। इस बजट से मुझे तो नहीं लगता कि महंगाई पर नियंत्रण कर लिया जाएगा, युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर उपलब्ध होंगे। हां, थोड़ी बहुत वित्तीय घाटे को कम कर लें, तो यही काफी होगा। वित्त मंत्री ने खुद स्वीकार किया है कि अनिश्चितता की स्थिति है और खाड़ी संकट, कमजोर मानसून की स्थिति में सरकार के समक्ष बड़ी चुनौतियां हैं।

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