अंबानी से दूरी दिखाने की कोशिश?

गिरफ़्तार लोगों में देश की सबसे बड़ी निजी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड के एक कर्मचारी के अलावा दो कथित सलाहकार, एक पत्रकार और एक कनिष्ठ सरकारी कर्मचारी भी शामिल है.

आख़िर कौन नहीं जानता कि अफ़सरशाही किसी छननी की तरह चूती है?

आम तौर पर यह सब जानते हैं कि छोटी सी रिश्वत के बदले सरकारी दफ़्तरों से सबसे ज़्यादा 'गोपनीय' और 'कीमती' फ़ाइलें भी फ़ोटोकॉपी या स्कैनिंग के लिए उपलब्ध हो सकती हैं.

तो फिर इस ताज़ा कारोबारी षडयंत्र में नया क्या है?

संदेश

पहली और सबसे सीधी वजह यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पैट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान एक संदेश देना चाहते थे कि वह देश के सबसे रईस आदमी मुकेश धीरूभाई अंबानी के नेतृत्व वाले कारोबारी गुट के समर्थक नहीं है. इसलिए पुलिस सख़्त कार्रवाई कर रही है.

यकीनन अगर मोदी सरकार रिलायंस समूह के ज़्यादा नज़दीक नज़र आएगी तो आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल इस पर गंभीर हमले करेंगे जो पिछले दो साल से बार-बार यह दावा कर रहे हैं कि देश को दरअसल अंबानी और उनके सहयोगी चला रहे हैं.

कंपनियों के प्रतिनिधि और लॉबिस्ट बरसों से सरकारी दस्तावेज़ हासिल करते रहे हैं. ज़्यादा ज़रूरी सवाल यह है कि इस वक्त वह यह क्यों जानना चाहते हैं कि पैट्रोलियम मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी क्या करना चाह रहे हैं.

मंत्रालय से जुड़े चार विवादित मामले हैं जो ज़हन में आते हैं.

सरकार को यह तय करना है कि 'डीप वाटर' और 'अल्ट्रा डीप वाटर' कहे जानी वाली खोजों से मिलने वाली प्राकृतिक गैस के दाम पर कितना प्रीमियम तय करना है.

इनमें कृष्णा-गोदावरी (केजी) बेसिन में खोज अभियान भी शामिल है जिसका संचालन रियालंस के नेतृत्व वाली एक ठेकेदार कंपनी कर रही है.

'भूगर्भीय हलचल'

इसके अलावा तीन और विवाद हैं जो अंबानी के नेतृत्व वाले समूह और सरकार के बीच चल रहे हैं. ये या तो अदालत में या मध्यस्थता के विभिन्न चरणों में हैं.

सुप्रीम कोर्ट में लंबित एक जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि सरकार और रिलायंस ने केजी बेसिन में एक विशेष क्षेत्र से गैस उत्पादन घटाने का षड्यंत्र किया है ताकि दाम बढ़ाए जा सकें.

यह रिलायंस और सरकार द्वारा अप्रैल 2000 में किए उत्पादन साझा करने के अनुबंध का उल्लंघन है. कंपनी का कहना है कि गैस उत्पादन 'भूगर्भीय अचरच' की वजह से कम हुआ है.

लेकिन सीएजी समेत सरकार के कुछ धड़ों ने आरोप लगाया है कि निजी ठेकेदार ने पर्याप्त कुएं नहीं खोदे और न ही पूरे क्षेत्र का उस तरह दोहन किया जिसकी उम्मीद थी.

इसका परिणाम यह हुआ कि गैस उत्पादन उम्मीद के मुकाबले काफ़ी गिर गया.

इसके अलावा रिलायंस के नेतृत्व वाली ठेकेदार कंपनी पर पैट्रोलियम मंत्रालय द्वारा 'लागत वसूली के प्रतिबंध' के रूप में लगाए गए करीब 15,000 करोड़ रुपये के जुर्माने का मामला आर्बिट्रेशन में चल रहा है.

रिलायंस बहुत सारे ख़र्चों को गैस बेचकर वसूल कर सकती है लेकिन इस पर विवाद है कि ख़र्च वसूलने के लिए कितने की ज़रूरत है और सरकार का आरोप है कि कंपनी उससे कहीं ज़्यादा वसूल चुकी है जितनी इसे अनुमति है.

अंबानी नहीं अडानी

और अंत में भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी ओएनजीसी और निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी आरआईएल के बीच केजी बेसिन से 30,000 करोड़ रुपये कीमत की प्राकृतिक गैस चोरी का अभूतपूर्व विवाद है.

ओएनजीसी और आरआईएल के बीच यह विवाद फ़िलहाल एक अमरीकी कंपनी के आर्बिट्रेशन में है और बताया जा रहा है कि वार्ता महत्वपूर्ण स्तर तक पहुंच गई है.

यह साफ़ है कि इन विवादों और मुद्दों पर सरकार क्या सोच रही है इसमें लोगों की काफ़ी रुचि हो सकती है, इसलिए गोपनीय दस्तावेज़ हासिल करने के लिए बड़ा 'इनाम' भी.

अब यह कोई राज़ नहीं है कि बड़ी व्यापारिक घराने छुपकर राजनीतिक दलों को चंदा देते हैं. यह भी जगज़ाहिर है कि भारतीय कॉर्पोरेट सेक्टर खुलकर मोदी और भारतीय जनता पार्टी का समर्थन कर रहा था.

ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि वर्तमान सरकार ऐसा संदेश देना चाहती है कि वह रिलायंस समूह की आभारी नहीं क्योंकि मोदी की नज़दीकी अडानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी से बढ़ रही है और इससे कुछ लोग नाराज़ भी हैं.

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  • Authorship: Cyril Sam and Paranjoy Guha Thakurta
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