“आई, मी, माईसेल्फ...सब बोरिंग है। अस एंड वी...इन्ट्रस्टिंग है... इंटरनेट है तो फ्रेंडशिप है... फ्रेंडशिप है तो शेयरिंग है... जो मेरा है वो तेरा... जो तेरा है वो मेरा है...”
एयरटेल के इस विज्ञापन को आपने टीवी पर जरूर देखा होगा। इस विज्ञापन में इंटरनेट की दुनियां को बहुत ही उदार बताया गया है। इंटरनेट की दुनियां तक तो ऐसा होना अच्छा लगता है लेकिन जब ऐसा सरकारी संपत्ति को लेकर कहा जाने लगे तो आप क्या कहेंगे? दूरसंचार विभाग और भारती एयरटेल के बीच जो कुछ हुआ वह इस विज्ञापन के बोल को सार्थक करता प्रतीत हो रहा है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा है कि भारती ग्रुप (एयरटेल) ने बड़े ही व्यवस्थित तरीके से अपने बही-खाते में हेर-फेर किया। इस हेर-फेर से सरकार को सीधा नुकसान हुआ है। भारती एयरटेल को राजस्व के तौर पर जितनी राशि सरकार को देनी पड़ती, उसे इस हेर-फेर के जरिये बचा लिया या यू कहें कि सरकार को अंधेरे में रख कर नुकसान पहुंचाया।
ऐसा कभी नहीं हो सकता है कि भारती एयरटेल जैसी नामी-गिरामी कंपनी इस तरह का खेल खेल रही हो और दूरसंचार विभाग को पता न हो। दूरसंचार विभाग की इस अनदेखी से कंपनी ने करीब 14,500 करोड़ रुपये का ‘अनुचित फायदा’ उठाया। साथ ही कॉरपोरेट नवीनीकरण के आड़ में 44,000 करोड़ रुपये प्राप्त किए। यहां नवीनीकरण से मतलब ये हैं कि एक कंपनी को चलाने में कई तरह की सेवाओं और सुविधाओं की जरूरत होती है, जिसे वह खुद करती है या बाहर से मदद लेती है। लेकिन इस केस में ऐसा नहीं हुआ, भारती एयरटेल ने कई कंपनी ही बना डाला।
भारती एयरटेल भारत की सबसे चर्चित दूरसंचार कंपनी है जो एशिया और अफ्रीका के तकरीबन 20 देशों में अपनी मोबाईल सेवा प्रदान करती है। कैग की ड्राफ्ट रिपोर्ट यह सवाल उठाती है कि भारती ग्रुप आज जिस ऊंचाई पर है वह वाकई सुनिल मित्तल की बिजनेस सूझबूझ से है या फिर राजनेताओं और नौकरशाहों के मदद की वजह से है, जिन्होंने नियम कायदों को ताक पर रख कर कॉरपोरेट हितकारी नीतियों का निर्माण किया। सर्वोच्च न्यायालय ने 17 अप्रैल 2014 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। जिनमें भारती एयरटेल कंपनी के दावों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ‘ऑडिट’ तो ‘रसीदों का जांच-पड़ताल’ मात्र है। इससे पहले जब कैग, भारती एयरटेल कंपनी का बही-खातों का ‘ऑडिट’ करना चाही तो कंपनी सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गई और दावा किया कि कैग ऐसा नहीं कर सकता है।
फिक्स्ड लाइसेंस फीस मॉडल और रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल
वर्ष 1999 से 2004 के बीच का वह दौर आपको जरूर याद होगा जब दूरसंचार क्षेत्र की कई कंपनियों को लाइसेंस दिया गया था। यही वह समय था जब दूरसंचार लाईसेसं के लिए कंपनियों को एकमुश्त लाइसेंस फीस देने वाली व्यवस्था को छोड़कर रेवेन्यू शेयरिंग व्यवस्था को अपनाया पड़ा। जैसे ही यह नियम बना एयरटेल के दिन फिर गए। आखिर क्या है यह रेवेन्यू शेयरिंग व्यवस्था? इसके तहत लाईसेंस फीस के बदले कंपनी की कमाई का कुछ फीसदी हिस्सा अलग-अलग मद में सरकार को देना होता है। परिभाषा सरल है लेकिन इसे समझना और समझाना इतना जटिल क्यों हो गया? इसके कई कारण हैं। अगर कंपनी अपनी कमाई का लेखा-जोखा सही-सही रखती तो अच्छी बात थी लेकिन जब नीयत में खोट हो तो इसका सही लेखा-जोखा देना मुश्किल काम है और ऐसा ही भारती एयरटेल ने किया।
कैग का कहना है कि इस कंपनी ने लगातार अपने बही-खाते में हेर-फेर किया और रेवेन्यू या कमाई को कम करके दिखाया, जिससे सरकार को कम हिस्सा मिल सके। रिपोर्ट यह तो बताती है कि कंपनी ने कानून का उल्लंघन किया है लेकिन सरकार को कितनी राशि का नुकसान हुआ है इस पर साफ-साफ कुछ नहीं कहा गया है। साथ ही यह भी कहा है कि कंपनी के नवीनीकरण वाले तरीके से एयरटेल को 44,000 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। ये सब कारनामे वित्तीय वर्ष 2006-7 और 2009-10 के दौरान हुए। यह पहली दफा है जब सरकारी ‘ऑडिट’ विभाग ने किसी निजी कंपनी के बही-खाता का जांच की है। कैग की इस रिपोर्ट के बाद आयकर विभाग ने आयकर चोरी का संज्ञान लेते हुए कंपनी को नोटिस भी भेजा है।
भारती एयरटेल का बही-खाते अपने आप में बहुत ही दिलचस्प है। कंपनी अपनी आधारभूत परिसंपत्ति को बड़ी चालाकी से अपने अधिनस्थ कंपनियों को मुफ्त में दे दिया। कंपनी के ऑडिटर ने इस बात को स्वीकार भी किया है कि देश में समान्य रूप से स्वीकृत एकाउंट के सिद्धांतों का पालन नहीं हुआ है और अगर ऐसा हुआ होता तो कंपनी की कमाई कम हुई होती। कुछ तकनीकी बातें जैसे 'एडजस्टेड ग्रोस रेवेन्यूज' यानी एजीआर और 'स्पेक्ट्रम यूसेज चार्ज' यानी एसयूसी के मद में सरकार को क्रमशः आठ और पाँच फीसदी मिलना था लेकिन गड़बड़ी हुई। यहाँ 'एजीआर' की परिभाषा को दूरसंचार कंपनियों ने अगल-अलग तरीके से अर्थ निकाला। लेकिन इसका सामाधान टेलीकॉम डिस्प्यूट सेट्लमेंट एंड ऐपेलेंट ट्रिब्यूनल यानी टीडीएसएटी कर दिया।
इन विषमताओं से जुड़े सवालों की एक सूची बना कर दूरसंचार विभाग के सचिव राकेश गर्ग, भारती एयरटेल के मालिक सुनिल मित्तल और उनके दो कॉरपोरेट कम्युनिकेशन अधिकारियों को भेजा गया। जसका जवाब कंपनी की तरफ से बिजनेस स्टैंडर्ड में कुछ इस तरह दिया गया कि कैग की ऐसी किसी रिपोर्ट की जानकारी कंपनी को नहीं है और कुछ अन्य सवालों का जवाब नहीं दे सकते क्योंकि मामला कोर्ट में है। भूतपूर्व सांसद के पुत्र, देश के सम्मानिय नागरिक सम्मान पद्म-भूषण से विभूषित भारती इंटरप्राइजेज के चेयरमेन और सीईओ श्री सुनील मित्तल को ऐसे ही 'टेलीकॉम सम्राट' नहीं कहा जाता है। इस कहानी के बाद, ये आपको सोचना है कि हम आम नागरिक किस पर भरोसा करें और किस पर नहीं। क्या ये सच में है सच है कि ऐसे ही लोगों की वजह से अमीरों और गरीबों के बीच खाई बढ़ती जा रही है। जरा सोचिए...-
सह-लेखक: अदिति राॅय घटक, शिशुराज यादव