क्या देशव्यापी मज़दूर हड़ताल मोदी सरकार को निजीकरण रोकने को मजबूर कर पाएगी? क्या आंदोलनों के ज़रिए निजीकरण को रोका जा सकता है? पिछले तीस साल का अनुभव क्या बताता है? कहीँ ये हड़तालें छलावा या कर्मकांड तो नहीं बन गई हैं? क्या मज़दूरों को अब किसानों की तरह लड़ाई के नए हथियार ढूँढ़ने होंगे? डॉ. मुकेश कुमार के साथ चर्चा में हिस्सा ले रहे हैं-परांजय गुहाठाकुरता, उर्मिलेश, अनंत मित्तल, अमरजीत कौर और अशोक राव-