विभिन्न केंद्र सरकारों द्वारा वर्ष 1993 से 2010 के दौरान आवंटित की गई 214 कोयला खदानों का आवंटन निरस्त करने के सर्वोच्च अदालत के फैसले का भारतीय अर्थव्यवस्था पर दूरगामी असर पड़ेगा। इससे घरेलू कोयले की आपूर्ति में बाधा आएगी। यदि हम अपने बिजली उत्पादन पर बुरा असर नहीं पड़ने देना चाहते हैं तो हमें कोयले के आयात को बढ़ाना भी पड़ सकता है। फिर भी सुप्रीम कोर्ट का फैसला हमें अवसर प्रदान करता है कि हम देश में कोयला खनन की भ्रष्ट व अपारदर्शी प्रणाली को दुरुस्त कर सकें। यहां यह जरूर कहा जाना चाहिए कि कोयला
भारत के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस राजेंद्रमल लोढ़ा ने 25 अगस्त को कोयला खदान घोटाले के संबंध में फैसला सुनाते हुए जिस तरह के कठोर शब्दों का उपयोग किया, उसके बाद अगर वर्ष 1993 के बाद से आवंटित सभी 218 खदानों में से अधिकतर को जल्द ही निरस्त कर दिया जाता है तो किसी को हैरत नहीं होनी चाहिए। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण निर्माण क्षेत्र को जरूर कुछ समय के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन अंतत: इससे राजनेताओं व कारोबार जगत से जुड़े उनके चहेतों को यह सख्त संदेश जरूर जाएगा कि
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मोदी सरकार का जो पहला बजट पेश किया है, उससे एक बार फिर यह साबित हुआ है कि हमारे देश के दोनों प्रमुख दलों-भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की आर्थिक नीतियों में कोई खास अंतर नहीं है। पी चिदंबरम के बजट से यह बजट बहुत ज्यादा अलग नहीं है। पी चिदंबरम ने जो करने की कोशिश की थी, लेकिन गठबंधन सरकार की मजबूरियों के कारण उसे अंजाम देने में सफल नहीं हो सके, वही करने की बात नए वित्त मंत्री कह रहे हैं। चिदंबरम साहब विनिवेश के जरिये राजस्व जुटाना चाहते थे, अब नए वित्त मंत्री को भी